शनिवार, 1 सितंबर 2018

गरज



गरज
जाने कहाँ गये वो दिन, कहते थे तेरी छाव मे जीवन को हम बितायेंगे,
ना छोडेंगे यूँ साथ तेरा, साथ चलते जायेंगे,
जिस रहा चलोगे तुम हमसफर बन जायेंगे ,

फिर आज क्यूँ अकेला चल रहा हूँ मैं,
जीवन की तपन सहे घुट के मर रहा हूँ मैं ,
सदी सा ये दिन लगे , रात सर्द लग रही क्यूँ ,
क्यूँ लगे पहाड सा, ये रास्ता उजाड सा,
पैर थक रहे है क्यूँ , छाले पड रहे है क्यूँ ,