झांका हूँ जब-जब मैं दिल की गहराइयों में,
तेरा ही अक्श उभरता रहा है,
नयनो से तेरी ये जो बहता है पानी,
दिल में मेरे यूँ अखरता रहा है,,
जीने ना देती यें भीगी सी पलकें,
झांका हूँ जब-जब मैं दिल की गहराइयों में,
तेरा ही अक्श उभरता रहा है,
नयनो से तेरी ये जो बहता है पानी,
दिल में मेरे यूँ अखरता रहा है,,
जीने ना देती यें भीगी सी पलकें,
मुहब्बत का पैगाम पसंद है,
तेरे शहर में,
आज-कल हवा कुछ बदली बदली है,
शायद...
अफवाहों का बाजार गर्म है,
तेरे शहर में,
कुछ मेहमां आए थे चंद रोज़ के लिए,
जाते ही नहीं...
वो रेशमी छांव थी या एक तड़प में हंसी,
जिंदगी का ये मौसम बदल-बदल सा गया,
आज फिर से थे वो मेरे आमने-सामने,
दिल ये थम सा गया फिर मचल ही गया,
वो रेशमी छांव...
अचानक माहौल हुआ ये कैसा?
हवा क्यों खुश्क हो गई?
आफताब क्यों मंद है?
धरा की सोंधी खुशबू कहां खो गई?
एक चुनरी तार-तार नजर आई है अभी,
आशियां जला है किसी का ?
या फिर से कोई मासूम अपनी इज्जत खो गई,
जग है यह अजब निराला ,
क्या मैं भी उस मे खो जाऊं?
पागल है यह दुनिया सारी ,
क्या मैं भी पागल हो जाऊं?
पागल है कोई धन के पीछे,
कोई पागल तन के पीछे।
कोशिश करें कोई पहाड़ चढ़न की,
कोई पकड़ उसको खींचे।
दौड़ रहा है जग यह सारा ,
क्या मैं भी शामिल हो जाऊं?
गर्दिश में, हीरा भी धूल हो गया,
मौसम क्या बदला ,चूर-चूर हो गया,
राहगीर पूछते रहे बेताबी में ,पता उसका,
वह कभी मकां था, जो अब ख़राबा हो गया,
एक दरिया लड़ता रहा, रवानी को उम्र भर,
आपस में है प्यार बहुत,
बस प्यार जताना भूल गए,
चाह बहुत संग जीने की ,
बस साथ निभाना भूल गए,
आह एक अकुलाई सी,
जब देखी आँख पथराई सी,
एक टीस उठी जब चोट लगी,
बस दर्द बताना भूल गए,
क्या याद नहीं तुमको , वो गुजरा ज़माना ,
वो बाते मोहब्बत की, वो अपना अफ़साना,
आँखों ही आँखों मे दिन यूँ गुज़रते थे ,
लब कुछ कहने को रुकते थे, सम्हलते थे ,
वो आहों की गर्मी, वो ख्वाबों में बिखर जाना,
कल धरती माँ रोई होगी,
पलकें यूँ भिगोई होगी।
देख अपने पुत्र की हालत,
जाने कैसे सोई होगी ।
सियासत का जब जोर चला,
अंधियारो का फिर शोर चला।
शोषण की जब सरकार हुई ,
चाहु ओर हाहाकार हुई।
ग़र हक की माँगो , खाओ लाठी ,
क्यूँ व्यवस्था इतनी लाचार हुई।
जब लाठी चली बुजुर्ग के पैरो पर,