झांका हूँ जब-जब मैं दिल की गहराइयों में,
तेरा ही अक्श उभरता रहा है,
नयनो से तेरी ये जो बहता है पानी,
दिल में मेरे यूँ अखरता रहा है,,
जीने ना देती यें भीगी सी पलकें,
झांका हूँ जब-जब मैं दिल की गहराइयों में,
तेरा ही अक्श उभरता रहा है,
नयनो से तेरी ये जो बहता है पानी,
दिल में मेरे यूँ अखरता रहा है,,
जीने ना देती यें भीगी सी पलकें,
मुहब्बत का पैगाम पसंद है,
तेरे शहर में,
आज-कल हवा कुछ बदली बदली है,
शायद...
अफवाहों का बाजार गर्म है,
तेरे शहर में,
कुछ मेहमां आए थे चंद रोज़ के लिए,
जाते ही नहीं...
वो रेशमी छांव थी या एक तड़प में हंसी,
जिंदगी का ये मौसम बदल-बदल सा गया,
आज फिर से थे वो मेरे आमने-सामने,
दिल ये थम सा गया फिर मचल ही गया,
वो रेशमी छांव...
जाहिल था,
दिए उनके जहर को ,अमृत समझ कर पी गया,
जर्रा-जर्रा करके बिखरा हूँ पतझड़ की तरहा ,
मासूमियत उनकी -
बोले, जालिम क्या खूब जिंदगी जी गया,
दर्द को क्या समझेंगे मेरे ,वो फूलों पर चलने वाले,
एक कांटा क्या लगा ,
जख्मों को कोई आंसू के मरहम से सी गया,
गर्दिश में, हीरा भी धूल हो गया,
मौसम क्या बदला ,चूर-चूर हो गया,
राहगीर पूछते रहे बेताबी में ,पता उसका,
वह कभी मकां था, जो अब ख़राबा हो गया,
एक दरिया लड़ता रहा, रवानी को उम्र भर,
आपस में है प्यार बहुत,
बस प्यार जताना भूल गए,
चाह बहुत संग जीने की ,
बस साथ निभाना भूल गए,
आह एक अकुलाई सी,
जब देखी आँख पथराई सी,
एक टीस उठी जब चोट लगी,
बस दर्द बताना भूल गए,
रात घटाएँ आई थी घिरकर,
हँवाओ मे अज़ब शोर था ।
वो आकर लौट गए दर से मेरे,
हम समझे कि कोई ओर था।
अफ़साना बन भी जाता कोई,
कुछ मेरी बेख्याली शायद,
कुछ रुसवाई का दौर था।।
इस अंदाज से आँखे मिलाकर, पलकें झुका ली उसने,
हम बेजान से रह गए, रुह बाकी थी वो भी चुरा ली उसने,
दीदार को उसके नयन,भटकते रहे दर-बदर,
एक निशानी थी उसकी,वो भी छुपा ली उसने,
आओ तुम्हे यूँ मजबूर कर दूँ ,
दिल खोलकर रख दूँ या चूर-चूर कर दूँ ,
ले जाओ छाँटकर , हिस्सा जो तुम्हारा है,
तुम्हारी बेख्याली मे भी तुम्हे मशहूर कर दूँ।
क्या याद नहीं तुमको , वो गुजरा ज़माना ,
वो बाते मोहब्बत की, वो अपना अफ़साना,
आँखों ही आँखों मे दिन यूँ गुज़रते थे ,
लब कुछ कहने को रुकते थे, सम्हलते थे ,
वो आहों की गर्मी, वो ख्वाबों में बिखर जाना,