गर्दिश में, हीरा भी धूल हो गया,
मौसम क्या बदला ,चूर-चूर हो गया,
राहगीर पूछते रहे बेताबी में ,पता उसका,
वह कभी मकां था, जो अब ख़राबा हो गया,
एक दरिया लड़ता रहा, रवानी को उम्र भर,
गर्दिश में, हीरा भी धूल हो गया,
मौसम क्या बदला ,चूर-चूर हो गया,
राहगीर पूछते रहे बेताबी में ,पता उसका,
वह कभी मकां था, जो अब ख़राबा हो गया,
एक दरिया लड़ता रहा, रवानी को उम्र भर,
रात घटाएँ आई थी घिरकर,
हँवाओ मे अज़ब शोर था ।
वो आकर लौट गए दर से मेरे,
हम समझे कि कोई ओर था।
अफ़साना बन भी जाता कोई,
कुछ मेरी बेख्याली शायद,
कुछ रुसवाई का दौर था।।
इस अंदाज से आँखे मिलाकर, पलकें झुका ली उसने,
हम बेजान से रह गए, रुह बाकी थी वो भी चुरा ली उसने,
दीदार को उसके नयन,भटकते रहे दर-बदर,
एक निशानी थी उसकी,वो भी छुपा ली उसने,
आओ तुम्हे यूँ मजबूर कर दूँ ,
दिल खोलकर रख दूँ या चूर-चूर कर दूँ ,
ले जाओ छाँटकर , हिस्सा जो तुम्हारा है,
तुम्हारी बेख्याली मे भी तुम्हे मशहूर कर दूँ।