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गर अजीज हो मेरे
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शनिवार, 22 सितंबर 2018
ग़र अज़ीज हो मेरे
रात घटाए आई थी घिर कर
,
हवाओं
मे अजब शोर था
,
वो आकर लौट गए दर से मेरे
,
हम समझे के कोई और था
,
अफसाना बन भी जाता कोई
,
कुछ मेरी बेख्याली
,
कुछ शायद रुसवाई का दौर था।
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