कल धरती माँ रोई होगी,
पलकें यूँ भिगोई होगी।
देख अपने पुत्र की हालत,
जाने कैसे सोई होगी ।
सियासत का जब जोर चला,
अंधियारो का फिर शोर चला।
शोषण की जब सरकार हुई ,
चाहु ओर हाहाकार हुई।
ग़र हक की माँगो , खाओ लाठी ,
क्यूँ व्यवस्था इतनी लाचार हुई।
जब लाठी चली बुजुर्ग के पैरो पर,