झांका हूँ जब-जब मैं दिल की गहराइयों में,
तेरा ही अक्श उभरता रहा है,
नयनो से तेरी ये जो बहता है पानी,
दिल में मेरे यूँ अखरता रहा है,,
जीने ना देती यें भीगी सी पलकें,
झांका हूँ जब-जब मैं दिल की गहराइयों में,
तेरा ही अक्श उभरता रहा है,
नयनो से तेरी ये जो बहता है पानी,
दिल में मेरे यूँ अखरता रहा है,,
जीने ना देती यें भीगी सी पलकें,
मुहब्बत का पैगाम पसंद है,
तेरे शहर में,
आज-कल हवा कुछ बदली बदली है,
शायद...
अफवाहों का बाजार गर्म है,
तेरे शहर में,
कुछ मेहमां आए थे चंद रोज़ के लिए,
जाते ही नहीं...
"शिरिर-शिरिर"
यह आवाज सूचक है, कि सुबह के 7:00 बज चुके है और यह मेरे जागने का समय है। यह आवाज मेरी माता जी की है, जो रोज सुबह मेरे लिए अलार्म का कार्य करती हैं।
मैं हड़बड़ा कर उठा और बोला - मम्मी ,आपने मुझे फिर देर से उठाया , मुझे आज सुबह 6:00 बजे उठना था।
यूँ तो मैं रोजाना देर से ही उठता हूँ। पर आज का दिन मेरे लिए कुछ खास है। इसलिए मैं रात को जल्दी ही सो गया था ताकि सुबह जल्दी उठ कर, 9:00 बजे तक अपनी क्लास मे पहुंच सकूं। क्योंकि आज मुझे स्नेहा का जवाब मिलना था और मैं रोजाना की तरह कम से कम आज तो लेट नहीं होना चाहता था...