भौतिक जगत में उतर आए,
क्यों तुम प्रसिद्धि के पंख लगा कर?
लौट चलो प्रकृति की तरफ,
पावन, सुलभ चरण बढ़ाकर।
अलौकिक सौंदर्य खोज रहा,
तुम्हें पलकें बिछाकर।
खो जाओ तुम भी उसमें,
जीवन की चाह भुला कर।
भौतिक जगत में उतर आए,
क्यों तुम प्रसिद्धि के पंख लगा कर?
लौट चलो प्रकृति की तरफ,
पावन, सुलभ चरण बढ़ाकर।
अलौकिक सौंदर्य खोज रहा,
तुम्हें पलकें बिछाकर।
खो जाओ तुम भी उसमें,
जीवन की चाह भुला कर।
मुहब्बत का पैगाम पसंद है,
तेरे शहर में,
आज-कल हवा कुछ बदली बदली है,
शायद...
अफवाहों का बाजार गर्म है,
तेरे शहर में,
कुछ मेहमां आए थे चंद रोज़ के लिए,
जाते ही नहीं...