झांका हूँ जब-जब मैं दिल की गहराइयों में,
तेरा ही अक्श उभरता रहा है,
नयनो से तेरी ये जो बहता है पानी,
दिल में मेरे यूँ अखरता रहा है,,
जीने ना देती यें भीगी सी पलकें,
झांका हूँ जब-जब मैं दिल की गहराइयों में,
तेरा ही अक्श उभरता रहा है,
नयनो से तेरी ये जो बहता है पानी,
दिल में मेरे यूँ अखरता रहा है,,
जीने ना देती यें भीगी सी पलकें,
भौतिक जगत में उतर आए,
क्यों तुम प्रसिद्धि के पंख लगा कर?
लौट चलो प्रकृति की तरफ,
पावन, सुलभ चरण बढ़ाकर।
अलौकिक सौंदर्य खोज रहा,
तुम्हें पलकें बिछाकर।
खो जाओ तुम भी उसमें,
जीवन की चाह भुला कर।