जग है यह अजब निराला ,
क्या मैं भी उस मे खो जाऊं?
पागल है यह दुनिया सारी ,
क्या मैं भी पागल हो जाऊं?
पागल है कोई धन के पीछे,
कोई पागल तन के पीछे।
कोशिश करें कोई पहाड़ चढ़न की,
कोई पकड़ उसको खींचे।
दौड़ रहा है जग यह सारा ,
क्या मैं भी शामिल हो जाऊं?
पागल है यह दुनिया सारी ,
क्या मैं भी पागल हो जाऊं?
कोई पागल सत्ता के पीछे ,
कोई पागल पीछे गद्दी के।
कोई पागल वोटों के पीछे,
कोई पागल पीछे ,
खबर रूपी अखबारों की रद्दी के।
कोई आलू से सोना देखो ,
किस एहतियात से खींच रहा।
कोई अच्छे दिन के जुमलो से ही ,
जनता को सींच रहा।
कोई पागल गौरो के पीछे,
कोई पागल पीछे कालो के।
कोई पागल पीछे हैं ,
नित-नित होते घोटालों के।
कोई पागल मंदिर के पीछे,
कोई पागल पीछे मस्जिद के।
एक थैली के चट्टे-बट्टे ,
क्या मैं भी थैली में खो जाऊं?
पागल है यह दुनिया सारी ,
क्या मैं भी पागल हो जाऊं?
पति पागल पत्नी छोड़कर ,
पीछे अच्छी लगती नार पराई के।
पत्नी पागल पीछे ,
टीवी पर होती सास-बहू की लड़ाई के।
युवा पागल हैं पीछे ,
ना कम होती बेरोजगारी के।
झुग्गी-झोपड़ी, बस्ती-मलिन निवासी पागल पीछे,
नित बढ़ती महामारी के।
स्कूल जाता बच्चा पागल पीछे,
कमर झुकाते बोझ कंधों पर भारी के।
किसान हल रोके बैठा पागल पीछे,
मौसम की लाचारी के।
मैं भी एक किसान का बेटा,
क्या फांसी लगाकर सो जाऊं?
पागल है यह दुनिया सारी ,
क्या मैं भी पागल हो जाऊं?
मां-बाप डरकर है पागल ,
देर स्कूल से घर लौटते बच्चों से।
दुनिया पागल हुई है सारी ,
बाबा, मौलवी झूठे-सच्चो से।
जनता हुई है पागल ,
बढ़ते अपराध के अहोदो से।
मासूम सी लड़की हुई है पागल,
नुक्कड़ पर खड़े शहोदो से।
मन करता है मेरा अब तो ,
एक-एक व्यभिचारी को राह नर्क की दिखा जाऊं।
पागल है यह दुनिया सारी ,
क्या मैं भी पागल हो जाऊं?
आशिक पागल है पीछे ,
लात मार गई स्वीटू के।
देहभक्षक पागल है पीछे ,
रोज निकल कर आते 'मी टू' के।
युवा हुआ है पागल पीछे,
पब्जी के बुखार के।
आम आदमी हुआ है पागल,
बढ़ते भ्रष्टाचार से।
गुम है सब अपने मे,
क्या मैं भी गुम कहीं हो जाऊं?
पागल है यह दुनिया सारी ,
क्या मैं भी पागल हो जाऊं ?
दुनिया हुई है पागल ,
कोरोना की महामारी से।
कामकाजी हुआ है पागल,
नौकरी छूटने पर,
घर बैठने की लाचारी से।
क्या कर लापरवाही ,
हो रोग-ग्रस्त ,
पढ़ा लिखा अनपढ़ कहलाऊं।
पागल है यह दुनिया सारी ,
क्या मैं भी पागल हो जाऊं?
***अंकित चौधरी***
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 29 दिसंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
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रचना को सम्मलित करने के लिए हार्दिक आभार 🙏
हटाएंवाह ! सच ये पागलपन का दौर हर तरफ दिखाई पड़ता है । यथार्थ का सुंदर निरूपण ।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार 🙏
हटाएंसच पागलों की भीड में अकेला कोई नहीं
जवाब देंहटाएंकोई निरोगी हो, ऐसा कहां संभव है आज के हालातों में
हार्दिक आभार 🙏
हटाएंशानदार अभिव्यक्ति यथार्थ सामायिक वेदना लिए।
जवाब देंहटाएंसुंदर।
👌👌👌
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार 🙏
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