आओ तुम्हे यूँ मजबूर कर दूँ ,
दिल खोलकर रख दूँ या चूर-चूर कर दूँ ,
ले जाओ छाँटकर , हिस्सा जो तुम्हारा है,
तुम्हारी बेख्याली मे भी तुम्हे मशहूर कर दूँ।
पत्ते गिरते है जब शाख़ से तो खनक नही होती ,
आह होती है बस ,पर तड़प नही होती,
अज़ब माहौल है ,रंगीनियों का उनकी महफिल मे,
दीये सिसकते रहे रात भर ,पर भनक नही होती,
सुना है सितारे आते है , उनके आगोश मे जवां होने को,
जाने क्यूँ उनके जुगनूओ मे चमक नही होती,
उतार कर फेंक दो ,चेहरे से ये फरेबी पर्दा,
या तो इस तरफ ,या क्यूँ उस तरफ नही होती,
सिलवटें सुलग रही है चादर की अभी,
लगता है रात भयानक गुजरी है,
एक नम कतरा लडता रहा थपेडो से,
गर्म हवा को क्या पता ,उसपर क्या गुजरी है,
लोग देखते रहे सुर्ख लाली का रंग,
पास आओ तो बतलाएं ,
हम पर क्या गुजरी है,उन पर क्या गुजरी है।
*** अंकित चौधरी ***
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंवर्तनी की अशुद्धियाँ रचना की गरिमा को कम करती हैं ।
जवाब देंहटाएंध्यान दें ।
भावपूर्ण अभिव्यक्ति
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंएक नम कतरा लडता रहा थपेडो से,
जवाब देंहटाएंगर्म हवा को क्या पता ,उसपर क्या गुजरी है,
उम्दा रचना....
बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंइश्क़ सब समझता है किस पे क्या गुज़री, कब और क्यों गुज़री ...
धन्यवाद
हटाएंसादर धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 16 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर धन्यवाद 🙏
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत ही उम्दा
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद 🙏
हटाएंलाजवाब!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन।
आभार 🙏
हटाएंरचना सरहाने के लिए सादर धन्यवाद 🙏
जवाब देंहटाएंवाह!सुंदर सृजन।
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