सोमवार, 26 जुलाई 2021

फरेबी पर्दा

आओ तुम्हे यूँ मजबूर कर दूँ , 

दिल खोलकर रख दूँ या चूर-चूर कर दूँ ,

ले जाओ छाँटकर , हिस्सा जो तुम्हारा है,

तुम्हारी बेख्याली मे भी तुम्हे मशहूर कर दूँ।


पत्ते गिरते है जब शाख़ से तो खनक नही होती ,

आह होती है बस ,पर तड़प नही होती,

अज़ब माहौल है ,रंगीनियों का उनकी महफिल मे,

दीये सिसकते रहे रात भर ,पर भनक नही होती,


सुना है सितारे आते है , उनके आगोश मे जवां होने को,

जाने क्यूँ उनके जुगनूओ मे चमक नही होती,

उतार कर फेंक दो ,चेहरे से ये फरेबी पर्दा,

या तो इस तरफ ,या क्यूँ उस तरफ नही होती,


सिलवटें सुलग रही है चादर की अभी,

लगता है रात भयानक गुजरी है,

एक नम कतरा लडता रहा थपेडो से,

गर्म हवा को क्या पता ,उसपर क्या गुजरी है,

लोग देखते रहे सुर्ख लाली का रंग,

पास आओ तो बतलाएं ,

हम पर क्या गुजरी है,उन पर क्या गुजरी है।

         *** अंकित चौधरी ***


19 टिप्‍पणियां:

  1. वर्तनी की अशुद्धियाँ रचना की गरिमा को कम करती हैं ।
    ध्यान दें ।
    भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  2. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. एक नम कतरा लडता रहा थपेडो से,
    गर्म हवा को क्या पता ,उसपर क्या गुजरी है,

    उम्दा रचना....

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  4. बहुत खूब ...
    इश्क़ सब समझता है किस पे क्या गुज़री, कब और क्यों गुज़री ...

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  5. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 16 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. रचना सरहाने के लिए सादर धन्यवाद 🙏

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