फिरका-परस्ती
फैली है माहौल मे,
सम्हल कर रहा करो
,
खंजर है हर हाथ
मे ,
खून की कीमत इतनी
सस्ती नही होती,
क्यूँ खेलते हो
खूनी होली ?
सजदा किया करो,
अना वालो सम्हल
जाओ ,
अना की कीमत बहुत होती
है ,
नामरहम ना करो
इमान को ,
रुह मजलूम होती है ,
नादिम हुए फिर तो ,
क्या नादिम हुए ,
जीतो जहां , जहां को हार कर ,
ऐसे सिकंदर हुए तो क्या हुए,
रुह रहेगी खाली,
इमान ना रहेगा ,
मसनदे-शाही रहेगी
शायद ,
पर इत्मनान ना रहेगा,
वाह !!!बहुत सुन्दर रचना। लाजवाब भाव।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंbehtareen rachna
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंअच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.
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