शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2018

ख्वाबों की दुनिया मे रहता हूँ

ख्वाबों की दुनिया मे रहता  हूँ ,
आओ तुम्हें  कुछ ख्वाब उधारी  दे दूँ ,
चमक जाए चेहरे पर ख़ुशी  की लाली ,
ऐसी एक खुमारी दे दूँ ,
ये जो चाँद है •••
चाँद नहीं है ! एक सागर है ,
नाव चलाओ तो  उस पर,
मैं  लहरों  की रवानी दे दूँ ,   
पहुंच जाओ बचपन मे ,
वो बचपन बहुत याद आता है ,
खेल खेलो कोई फिर से ,
मै तुम्हे दादी की कहानी दे दूँ,

घोड़े दौड़ाओ तुम नभ मे ,
पर्वत लाँघ दो सारे,
पासा फैको कोई ऐसा ,
ये सागर बांध दो सारे,दौड़ो तुम दरिया मे 
तैरो  तुम जमीं पर,
मैं तुम्हे जरुरत का पानी दे दूँ ,

हाथ मे ले लो तुम सूरज ,
चंद्र लगाओ माथे पर ,
ये तारे नभ मे क्यों है
सजाओ इनको शाखों पर 
हथेली खोल के देखो,
धरा उस पर महसूस यूँ होगी ,
टपकी बूंद हो शबनम की कोई ,
जैसे कलियों के किनारों  पर,
बहरा जहान है सारा ,
शोर मचाओ तो सही ,
मैं तुम्हें एक आवाज क़रारी दे दूँ ,

धडकनें  सुनकर तो देखो ,
क्यूँ इतना शोर करती है ?
बात  हवाॅओं  से करलो , 
क्यों इतना जोर करती है ,
उड़ती रेत को कर लो ,
तुम जप्त अपनी हथेली मे ,
संगी लहरों के हो जाओ ,
क्यूँ संघर्ष पुरजोर करती है ?

लगाम साधो बादलों पर ,
घुमाओ उल्टी वक्त की घड़ियाँ ,
जग झुककर पथ यूँ देगा ,
किनारे छोड़ कर जैसे ,
बहता हो कोई दरिया,
हौसला आजमाओ तो थोड़ा ,
राह तुम खोज लो नयी ,
पहचान करलो तुम इनकी ,
 
मैं तुम्हें जरुरत की निशानी दे दूँ ,


ख्वाबों की दुनिया मे रहता  हूँ ,
आओ तुम्हे कुछ ख्वाब उधारी  दे दूँ ,
चमक जाए चेहरे पर  ख़ुशी की लाली,
ऐसी एक खुमारी दे दूँ !!!!!!! 

*** अंकित चौधरी ***


22 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 21 अक्टूबर 2018 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 20 अक्टूबर 2018 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. ये जो चाँद है ! चाँद नहीं है , एक सागर है ,
    नाव चलाओ तो सही उसपर,
    मैं लहरों की रवानी दे दूं |
    पहुंच जाओ बचपन में , कि बचपन बहुत याद आता है ,
    खेल खेलो कोई फिर से ,कि मैं तुम्हे दादी की कहानी दे दूं ।
    बहुत ही अनुपम कल्पनाओं से सुसज्जित रचना प्रिय अंकित जी | अनुराग का रंग शब्द शब्द छलक रहा है | सस्नेह शुभकामनाये |

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    1. सहृदय आभार आपका ,बस अपना स्नेह ऐसे ही बनाए रखिएगा...

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  4. घोड़े दौड़ाओ तुम नभ में ,पर्वत लाँघ दो सारे,
    पासा फेंको कोई ऐसा ,ये सागर बांध दो सारे।
    दौड़ो तुम दरिया में, तैरो तो जमीं पर,
    कि मैं तुम्हे जरुरत का पानी दे दूं ।
    बहुत पैनी धार है कल्पना की ..।। अति सुन्दर सृजन ।

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  5. हाथ मेंले लो तुम सूरज ,चंद्र लगाओ माथे पर ,
    ये तारे नभ मे क्यों है ? सजाओ इनको शाखों पर।
    हथेली खोल के देखो ,धरा उसपे महसूस यूं होगी ,
    टपकी बूंद हो शबनम की कोई जैसे कलियों के किनारों पर।
    बहरा जहान है सारा ,शोर मचाओ तो सही ,
    मैं तुम्हें एक आवाज क़रारी दे दूं | ...
    वाह, बेहतरीन सृजन सर

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  6. वाह!!!!
    बहुत सुन्दर.... लाजवाब...।

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  7. आदरणीय अपनी रचना का शीर्षक दूनिया को दुनिया करें ! सादर

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