रविवार, 25 जुलाई 2021

जीवन

या जीवन का मोल बता,

या इसको फिर अनमोल बता, 

या तो इसको तौल बता,

 या राज फिर इसके खोल बता।


जीवन है ग़र , एक बगिया,

 तो खिलने का जरिया दे दे।

जीवन है ग़र एक धारा ,

तो इसे बहने दे , एक दरिया दे दे।

जीवन है ग़र एक खुशबू ,

तो चारो ओर इसको फैला।

जीवन है ग़र एक आँचल ,

तो फिर क्यू है मैला- मैला।

जीवन है ग़र एक लहर ,

तो फिर ठहराव की बाते क्यूँ ?


जीवन है ग़र एक ठौर , 

तो हर दम आते- जाते क्यूँ ?

जीवन है ग़र एक संघर्ष , 

तो फिर संघर्ष से घबराते क्यूँ ?

जीवन है ग़र एक विजय , 

तो उपलब्धि पर इतराते क्यूँ ?

जीवन है ग़र क्षण- भंगुर , 

तो लम्बा जीकर करना क्या ?

जीवन है ग़र एक मरण ,

तो पल-पल , तिल- तिल मरना क्या ?

जीवन है ग़र बहुत विशाल, 

तो छोटा बनकर जीना क्या ?

जीवन है ग़र एक नशा ,

तो मय के प्याले पीना क्या ?

जीवन है ग़र एक उत्थान , 

तो फिर गिरना और फिसलना क्या ?

जीवन है ग़र एक पतन , 

तो फिर उठना और सम्हलना क्या ?

जीवन है ग़र एक सच्चाई , 

तो फिर ये झूठी बाते क्यूँ ?

जीवन है ग़र एक झूठ , 

तो सपने फिर सजाते क्यूँ ?

जीवन है ग़र एक डगर , 

तो राही फिर क्यो थकते है ?

जीवन है ग़र एक नगर , 

फिर सब इसमे क्यूँ नही बसते है ?

जीवन है ग़र एक रण ,

फिर तांडव चाहु ओर मचे ,

जीवन है ग़र एक अमन ,

तो फिर ख़ामोशी का शोर मचे ,

जीवन है ग़र अंधियारा ,

फिर दीपक बन क्यूँ नही जलते हो ?

जीवन है ग़र एक सैलाब , 

तो नाव इसमे उतारो तुम ,

जीवन है ग़र एक शांत झील ,

तो बैठ किनारे विचारो तुम ,

जीवन है ग़र एक उलझन ,

इसको फिर सुलझाओ तुम ,

जीवन है ग़र बहुत सरल , 

तो इसको थोडा फिर ऊलझाओ तुम।

                 ( अंकित चौधरी )


4 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. बहुत ही विचारणीय प्रश्न उठाती बहुत बहुत बहुत ही उम्दा और बेहतरीन रचना!

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