या जीवन का मोल बता,
या इसको फिर अनमोल बता,
या तो इसको तौल बता,
या राज फिर इसके खोल बता।
जीवन है ग़र , एक बगिया,
तो खिलने का जरिया दे दे।
जीवन है ग़र एक धारा ,
तो इसे बहने दे , एक दरिया दे दे।
जीवन है ग़र एक खुशबू ,
तो चारो ओर इसको फैला।
जीवन है ग़र एक आँचल ,
तो फिर क्यू है मैला- मैला।
जीवन है ग़र एक लहर ,
तो फिर ठहराव की बाते क्यूँ ?
जीवन है ग़र एक ठौर ,
तो हर दम आते- जाते क्यूँ ?
जीवन है ग़र एक संघर्ष ,
तो फिर संघर्ष से घबराते क्यूँ ?
जीवन है ग़र एक विजय ,
तो उपलब्धि पर इतराते क्यूँ ?
जीवन है ग़र क्षण- भंगुर ,
तो लम्बा जीकर करना क्या ?
जीवन है ग़र एक मरण ,
तो पल-पल , तिल- तिल मरना क्या ?
जीवन है ग़र बहुत विशाल,
तो छोटा बनकर जीना क्या ?
जीवन है ग़र एक नशा ,
तो मय के प्याले पीना क्या ?
जीवन है ग़र एक उत्थान ,
तो फिर गिरना और फिसलना क्या ?
जीवन है ग़र एक पतन ,
तो फिर उठना और सम्हलना क्या ?
जीवन है ग़र एक सच्चाई ,
तो फिर ये झूठी बाते क्यूँ ?
जीवन है ग़र एक झूठ ,
तो सपने फिर सजाते क्यूँ ?
जीवन है ग़र एक डगर ,
तो राही फिर क्यो थकते है ?
जीवन है ग़र एक नगर ,
फिर सब इसमे क्यूँ नही बसते है ?
जीवन है ग़र एक रण ,
फिर तांडव चाहु ओर मचे ,
जीवन है ग़र एक अमन ,
तो फिर ख़ामोशी का शोर मचे ,
जीवन है ग़र अंधियारा ,
फिर दीपक बन क्यूँ नही जलते हो ?
जीवन है ग़र एक सैलाब ,
तो नाव इसमे उतारो तुम ,
जीवन है ग़र एक शांत झील ,
तो बैठ किनारे विचारो तुम ,
जीवन है ग़र एक उलझन ,
इसको फिर सुलझाओ तुम ,
जीवन है ग़र बहुत सरल ,
तो इसको थोडा फिर ऊलझाओ तुम।
( अंकित चौधरी )
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही विचारणीय प्रश्न उठाती बहुत बहुत बहुत ही उम्दा और बेहतरीन रचना!
जवाब देंहटाएंरचना को सराहने के लिए धन्यवाद 🙏
हटाएं