बुधवार, 19 मई 2021

गुजरा ज़माना

 क्या याद नहीं तुमको , वो गुजरा ज़माना ,

वो बाते मोहब्बत की, वो अपना अफ़साना,

आँखों ही आँखों मे दिन यूँ गुज़रते थे ,

लब कुछ कहने को रुकते थे, सम्हलते थे ,

वो आहों की गर्मी, वो ख्वाबों में बिखर जाना, 

क्या याद नहीं तुमको, वो गुजरा ज़माना ,


संग जीने-मरने की वो यूँ बाते होती थी, 

सर कांधे पर रखकर जब तुम यूँ रोती थी ,

वो बाहों मे आकर, यूँ उनमे सिमट जाना,

क्या याद नहीं तुमको , वो गुजरा ज़माना ,


संग चले पथ पर थे, क्यूँ  राहें छूट गई, 

वो प्यार की लडियाँ ,क्यूँ अश्कों में डूब गई , 

मैं भटकू यहां- वहां, तुम राहों में मिल जाना ,


क्या याद नहीं  तुमको , वो  गुजरा ज़माना |


                   अंकित चौधरी 

8 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ मई २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।


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  2. वो आहों की गर्मी, वो ख्वाबों में बिखर जाना

    क्या याद नहीं तुमको, वो गुजरा ज़माना |---अच्छी रचना..।

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  3. दिल के दरारों को टटोलती रचना।

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  4. गुजरा जमाना किसको याद नहीं रहता...
    खलबली सी मचाती हुई रचना.

    नई पोस्ट पौधे लगायें धरा बचाएं

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