क्या याद नहीं तुमको , वो गुजरा ज़माना ,
वो बाते मोहब्बत की, वो अपना अफ़साना,
आँखों ही आँखों मे दिन यूँ गुज़रते थे ,
लब कुछ कहने को रुकते थे, सम्हलते थे ,
वो आहों की गर्मी, वो ख्वाबों में बिखर जाना,
क्या याद नहीं तुमको, वो गुजरा ज़माना ,
संग जीने-मरने की वो यूँ बाते होती थी,
सर कांधे पर रखकर जब तुम यूँ रोती थी ,
वो बाहों मे आकर, यूँ उनमे सिमट जाना,
क्या याद नहीं तुमको , वो गुजरा ज़माना ,
संग चले पथ पर थे, क्यूँ राहें छूट गई,
वो प्यार की लडियाँ ,क्यूँ अश्कों में डूब गई ,
मैं भटकू यहां- वहां, तुम राहों में मिल जाना ,
क्या याद नहीं तुमको , वो गुजरा ज़माना |
अंकित चौधरी
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ मई २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सादर धन्यवाद ।
हटाएंवो आहों की गर्मी, वो ख्वाबों में बिखर जाना
जवाब देंहटाएंक्या याद नहीं तुमको, वो गुजरा ज़माना |---अच्छी रचना..।
दिल के दरारों को टटोलती रचना।
जवाब देंहटाएंगुजरा जमाना किसको याद नहीं रहता...
जवाब देंहटाएंखलबली सी मचाती हुई रचना.
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सादर धन्यवाद
हटाएंसादर धन्यवाद
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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