शनिवार, 25 दिसंबर 2021

टूटते तारे (कहानी)

"शिरिर-शिरिर" 

यह आवाज सूचक है, कि सुबह के 7:00 बज चुके है और यह मेरे जागने का समय है। यह आवाज मेरी माता जी की है, जो रोज सुबह मेरे लिए अलार्म का कार्य करती हैं। 

मैं हड़बड़ा कर उठा और बोला - मम्मी ,आपने मुझे फिर देर से उठाया , मुझे आज सुबह 6:00 बजे उठना था। 

यूँ तो मैं रोजाना देर से ही उठता हूँ। पर आज का दिन मेरे लिए कुछ खास है। इसलिए मैं रात को जल्दी ही सो गया था ताकि सुबह जल्दी उठ कर, 9:00 बजे तक अपनी क्लास मे पहुंच सकूं।  क्योंकि आज मुझे स्नेहा का जवाब मिलना था और मैं  रोजाना की तरह कम से कम आज तो लेट नहीं होना चाहता था...

अरे हाँ ! स्नेहा , वह मेरी दोस्त है। हम दोनों साथ ही पढ़ते हैं, MBA कर रहे हैं । हमारा कॉलेज मेरे गांव के पास शहर मे है। मैं अपने गांव का पहला लड़का हूँ जो MBA कर रहा है। इसको लेकर मैं अपने दोस्तों पर रोब भी झाड़ता हूँ। 

खैर ! मैं अब आपको स्नेहा के बारे मे बताता हूँ। वह बहुत ही स्मार्ट और खुशमिजाज है, और मैं उसे बहुत दिनों से प्यार करता हूँ, पर कभी कह नहीं पाया।                                                        ...शायद कभी दोस्ती प्यार पर हावी हो जाती थी, या कभी एक अच्छे दोस्त को खोने का डर...                                                      जब आप किसी से बहुत ज्यादा प्यार करते हो, तो उससे कहने से भी उतना ही डरते हो कि कहीं वह मना ना कर दे और आप उसे खो ना दें। 

लेकिन कल मैंने अपना पूरा मन बना लिया था। 

'ऑल इज वेल ' बोलकर शायद मैं अपने मन को बहका रहा था या अपने दिल जो बहुत जोरों से धक-धक करके तेजी से दौड़ा जा रहा था , उस पर लगाम कसने की नाकाम कोशिश कर रहा था। 

स्नेहा के आते ही मैंने अपने होश संभाल कर उसे रोकते हुए कहा कि स्नेहा, मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।                                              

वह एकदम हैरान थी। उसके चेहरे के हाव-भाव बहुत तेजी से बदल रहे थे। फिर थोड़ा  मुस्कुराकर उसने कहा अगर मैं कल तुम्हें जवाब दूं तो कैसा रहेगा ?                                                              

उस दिन क्लास मे मुझे ऐसा लग रहा था कि शायद मुझे हार्ट अटैक आ जाएगा।                                                                   

तभी तो! आज मैं इतनी जल्दी मे था।                                       

अरे ! 7:30 बज चुके हैं। इस समय तो एफ.एम. पर टैरो कार्ड रीडर राशिफल बताते हैं। मैंने जल्दी से एफ.एम.लगाया और अपना राशिफल बड़े ध्यान से सुनने लगा। 

'फोर स्टार फॉर योर डे' यह सुनते ही मैं उछल पड़ा। शायद मेरा दिन अच्छा जाने वाला है। शायद स्नेहा•••

                                ****

मुझे 8:00 बजे निकल जाना होगा ताकि 9:00 बजे से पहले पहुंच कर मैं  स्नेहा से मिल सकूं। 

लेकिन बाहर होने वाले शोर ने मुझे मेरे दिवास्वप्न से बाहर ला दिया। नहीं ! शोर नहीं, शायद कोई रो रहा है।

मैंने दीदी से पूछा, ...दीदी यह बाहर कैसा शोर है ? 

शिरिर ,तुम्हारा दोस्त था ना वो , उसकी एक सड़क दुर्घटना मे मृत्यु हो गई है। 

मैंने पूछा- कौन,देवांश ? 

हाँ••• 

दीदी ज्यादा बताना चाहती थी लेकिन मुझे सुनने का समय कहां था। 

माँ ने कहा ... एक काम करो , तुम आज मत जाओ , तुम्हारा दोस्त था। 

"इसे भी आज ही के दिन मरना था " मैंने सोचा और फिर कहा... नहीं माँ, आज बहुत जरूरी क्लास है... किसी भी कीमत पर मिस नहीं कर सकता ...वैसे भी आज मैं जल्दी आ जाऊंगा।

मैं बाहर आया तो देखा देवांश के परिवार के सभी लोगों का रो-रो कर बुरा हाल था। 

देवांश मुझसे दो क्लास आगे था । परिवार की माली हालत थोड़ी खराब थी। चार बहन-भाई मे देवांश सबसे बड़ा था। बहन की शादी हो चुकी थी। भाई उससे छोटे थे , पिताजी की जॉब नहीं थी। मजबूरीवस देवांश किसी छोटी सी कंपनी मे नौकरी कर रहा था। उसके घर का सारा खर्च उसी से चलता था। 

                                     *****

मैं कॉलेज पहुंचा तो स्नेहा वहां पहले से ही थी। उसका जवाब हाँ था, उसका जवाब सुनकर मैं बहुत खुश था। ऐसा लगा शायद मैंने सब कुछ पा लिया है जो मैं चाहता था। आज मैं इतनी मस्ती में था कि पता ही नहीं चला कि मैं कब गांव वापस आ गया। गांव के बाहर मुझे विजय मिला , उससे पता चला कि देवांश दिल्ली से बाइक से घर आ रहा था।  रात के 2:00 बज रहे थे ,एक ट्रक के आगे बाइक फिसली और ट्रक उसे रौंदता हुआ चला गया। 

'इडियट' था ,भला कोई रात को भी चलता है ...मैंने कहा।

फिर सोचा स्नेहा मैं ऐसी गलती कभी नहीं करूंगा। 

आखिर!पढ़ा लिखा हूँ। इतनी समझ है मुझमे•••

उसकी तरह 12वीं पास थोड़े ही ना हूँ। 

गांव पहुंचा तो देखा , उसके घर के बाहर बहुत लोग इकट्ठे हैं। ऐसा लगा जैसे सभी मुझे ही घूर रहे हों। शायद मुझे बना-ठना देखकर जलन हो रही है।

अरे! मुझे ऐसे क्यों देख रहे हो ? मैंने थोड़े ही कहा था उसे कि  जा ट्रक के आगे लेट जा। सारा मूड खराब कर दिया। 

घर पहुंचा तो माँ की चेतावनी मिली।

शिरिर,आज नो TV नो म्यूजिक। 

Ok! मैंने गुस्से मे आकर कहा और अंदर अपने रूम मे चला गया। देवांश,तूने मेरा सारा दिन जो इतना अच्छा जा रहा था खराब कर दिया। मैने अपनी पसंद की एक रोमांटिक फिल्म लगाई और देखने लगाऔर खो गया अपनी दोस्त स्नेहा••• 

नहीं! दोस्त नहीं ,अब वह मेरी गर्लफ्रेंड है। अरे !आज ही तो हाँ कहा है उसने। 

लेकिन अचानक ये जोर का झटका क्या था ?

ध्यान टूटा तो पता चला कि मम्मी खड़ी थी। जो गुस्से मे मेरी तरफ देखते हुए बोली•••

'शिरिर, हद हो गई, मना करने के बाद भी तुमने टीवी चलाया। बेटा, वह तेरा दोस्त था'। 

'मम्मा, वह मेरा दोस्त था 5 साल पहले और एक दिन सभी को जाना है ,जाने वाले को खुशी से विदा करना चाहिए।' 

मम्मी गुस्से मे बोली 'बाहर जाओ , अभी उसे लेकर भी नहीं आया गया है '।

'अजीब मुसीबत है, अरे मेरा दोस्त है तो क्या करूं ? मैं भी  खाना पीना छोड़ कर उसी के पास चला जाऊं'? 

बाहर आया तो सभी उसी की बात कर रहे थे। कोई कह रहा था 'बाइक लीगी होगी ' तो दूसरा- 'नहीं पहले ट्रक ने टक्कर मारी होगी', तीसरा- नहीं रात में लाइट की ज्यादा चकाचौंध मे पता नहीं चला होगा "बेचारा"•••

अरे! टक्कर तो हो गई ना ,क्यों बहस कर रहे हो ,सभी अनपढ़ हैं मैंने सोचा? 

और मैं अपने हमउम्र लड़कों के ग्रुप में आकर खड़ा हो गया। तभी सड़क पर एक बाइक रुकी जिसपर एक व्यक्ति और पीछे सीट पर एक लड़की बैठी थी। 

एक मित्र बोला - 'शायद बेचारे भीड़ देखकर जानना चाह रहे होंगे क्या हुआ है? '

'अरे बेवकूफ हो, उस व्यक्ति को देख रहे हो उस लड़की को देखो जो मुझे देख कर मुस्कुराए जा रही है ,इस गांव के सारे लड़के बेकार हैं' मैंने सोचा। 

"सीधा", यह सब्द सुनकर मेरा ध्यान उस लड़की से हटा। कोई कह रहा था ,'बेचारा बहुत ही सीधा था, लड़ाई तो कभी किसी से करता ही नहीं था।' 

सभी उसकी हाँ मे हाँ मिला रहे थे। 

मैंने सोचा, 'सीधा था!' 

मुझे याद आया हम पास के गाॅव के पास के स्कूल मे पढ़ रहे थे तो रास्ते मे पडने वाले बाग से सभी अमरुद तोड़ रहे थे। तभी हमें एक खुराफात सूझी, हमने सबको डराया कि बाग वाला आ गया है ,देवांश डर के मारे उस दिन एक किलोमीटर ज्यादा घूम कर आया था,कही बागवाला उसे पकड ना ले । उस दिन हमने उसकी इतनी मजाक बनाई थी कि बता नहीं सकता। 

और हाँ! यह तो बिल्कुल झूठ है कि वह झगड़ा नहीं करता था। भले ही उसने एक बार ही किया हो पर किया तो था ना। पता है एक बार मैंने एक लड़के का लंच खा लिया था।अब खा तो लिया लेकिन पिटने  की बारी अब मेरी थी।मुझे पिटता देख देवांश ने उस लड़के को बहुत मारा था । 

'झगड़ालू तो था वह!'

तभी कोई बोला कि पोस्टमार्टम हो चुका है ,वह लोग देवांश को लेकर एक घंटे में आ जाएंगे। बड़े बुजुर्ग कह रहे थे कि अब तो शमशान मे लकड़ियां वगैरह पहुँचा देनी चाहिए। सभी लोग किसी न किसी काम मे लगे थे ,कोई सूखी लकड़ी ला रहा था तो कोई उन्हें काट रहा था।  मैं खड़ा था,...'अरे मेरे हाथ खराब हो जाएंगे यार।'

                             *****

मुझे याद है जब वह पिछली बार घर आया था , तो मुझसे पूछ रहा था ,'शिरिर' मैं दूसरी कंपनी मे जाना चाहता हूँ, वहाँ मुझे दोगुने  रुपए ऑफर हो रहे हैं, लेकिन  परेशान हूँ कि जगह बहुत दूर है,  पहाड़ों पर। गांव में भी बहुत दिनों मे आया जाएगा, क्या करूं?


लेकिन मैं तो उसके मोबाइल पर उसकी गर्लफ्रेंड के फोटो देख रहा था चुपके से ,बिना सुने बोल दिया ठीक है। 


मेरे दूसरे दोस्त लकड़ियां ट्रॉली मे लाद रहे थे। देवांश का सबसे छोटा भाई भी रोता हुआ उन्हे लादने की कोशिश कर रहा था। पता नहीं मुझे क्या हुआ, अचानक मन हुआ कि कम से कम एक लकड़ी तो मुझे भी डालनी चाहिए? 


अब हमें इन्हें लेकर शमशान जाना था। वैसे तो जब हम छोटे थे तो दिन मे भी शमशान आने से डरते थे, लोग कहा करते थे कि वहाँ भूत रहते हैं। 

शमशान पहुंचने पर ध्यान आया, अरे! देवांश को आने मे तो अंधेरा हो जाएगा। रात में श्मशान मे आना होगा तो कैसा लगेगा, डरावना? फिर विचार आया डरने की क्या बात है जब साथ मे दोस्त हो जो खुद मुर्दा है । वह बाकियों को समझा लेगा और मैं उसका दोस्त हूँ कम से कम इसी नाते ही सही वे मुझे कुछ नहीं कहेंगे। चलो देवांश के दोस्त होने का कुछ तो फायदा हुआ। 


वैसे, एक फायदा तो उसके घर वालों को भी होगा, खासकर छोटे भाई को,अब संपत्ति का बंटवारा नहीं होगा। वैसे भी भारत सरकार कहती है कि-

"छोटा परिवार, सुखी परिवार"

वापस आए तो देवास के घर मे भीड़ थी, शायद उसे ले आए थे। मैं भी अंदर चला गया, देखना चाहता था कि देवांश कैसा लग रहा है।  शायद "विभित्स" 

अंदर गया तो देखा कि सभी की आँखें नम थी। माँ भाई बहन सभी का बुरा हाल था। उससे लिपटकर रो रहे थे, हल्का सा मन मेरा भी दुखी हुआ। लेकिन मुझे तो उसका चेहरा देखना था। जैसे ही मैंने उसका चेहरा देखा तो थोड़ी देर के लिए जम सा गया और खड़ा हुआ देखता ही रह गया जैसे कहीं खो गया हूँ। 


याद आया अभी कुछ दिन पहले ही तो फोन पर कह रहा था,माँ अब मेरी सैलरी दुगनी हो गई है अब सब सही हो जाएगा। आप कहती थी ना कि मैं अपनी सेहत का ख्याल नहीं रखता।आज से रखूंगा ,अब कुछ बचत होने लगेगी ना। 

कल ही उसकी मम्मी बता रही थी कि देवांश का फोन आया है। बोल रहा था कि मैं आ रहा हूँ, दिल्ली आ गया हूँ। उसकी मम्मी ने कहा था कि रात हो रही है तुम कल आ जाना तो उसने कहा दो दिन की ही तो छुट्टी है, ज्यादा से ज्यादा वक्त आपके पास गुजारना चाहता हूँ, कुछ समय मे गांव पहुंच जाऊँगा। सब खुश थे लेकिन अचानक ये सब•• 


अचानक! मैं चौंका ,मेरे हाथ पर ये पानी की बूंद कहाँ से आई ? ऊपर देखा आकाश मे कोई बादल नहीं । 

फिर एहसास हुआ वह मेरी आँखों से गिरा आंसू था। एहसास हुआ कि मेरी आँखें भी नम हो चुकी थी। मैं तेजी से बाहर आ गया, शायद लगा अगर अंदर रहा तो रो दूँगा। 

देवांश की अंतिम यात्रा तैयार थी। सभी लोग पीछे-पीछे चुपचाप चल रहे थे। मैं सबसे पीछे चल रहा था। पता नहीं कहाँ खोया हुआ था।  मन मे अजीब विचार चल रहे थे। मैं अपने नाम का अर्थ  लेता था "कूल",जो सबको ठंडक दे। लेकिन आज मुझे अपने  नाम का मतलब कुछ और ही लग रहा था। सर्द कितना सर्द की जिसमें संवेदना ही ना बचे। मुझे एहसास हुआ कि शायद मेरी भी संवेदनाएं मर चुकी थी। 


अचानक इस एहसास ने मेरा ध्यान वापस उसी मोड पर  ला दिया कि जैसे किसी ने मेरे कांधे पर प्यार से हाथ रखा हो। लगा जैसे देवांश अपनी अंतिम यात्रा मे मेरे साथ चल रहा हो।

"राम नाम सत्य है " इस ध्वनी ने मुझे वापस असल दुनिया मे ला पटका । अब शव-यात्रा श्मशान घाट तक आ चुकी थी।  श्मशान देखकर बचपन का डर वापस लौट आया था। कुछ घबराहट हुई। नजर उठा कर इधर-उधर देखा। नजर उठा कर देखा तो अचानक उस श्मशान के बीच में मुस्कुराते हुए देवांश खड़ा हुआ दिखाई दिया। जो लगातार मुस्कुराते हुए मेरी  तरफ देखे जा रहा था। जैसे कह रहा हो आ जाओ मैं तुम्हारे साथ हूँ दोस्त। शायद देवांश की आत्मा हमारे साथ थी।

चिता सजाई जा रही थी,लोग सामग्री तैयार कर रहे थे। उसका छोटा भाई, जिसका चेहरा दुख से बिल्कुल निस्तेज हो चुका था, रोते हुए मुखाग्नि देने की तैयारी कर रहा था। उसके हाथ कांप रहे थे। 

अचानक मेरी आंखों के सामने उसकी माँ, भाई, बहन सभी का रोते हुआ चेहरा सामने आ गया। यह दृश्य देखकर मेरी हिम्मत जवाब दे रही थी। मेरी आँखों से लगातार आंसू बह रहे थे। जलती चिता मे आहुतियां दी जा रही थी, मंत्रोच्चारण किया जा रहा था। मैं अपनी जगह पर स्तब्ध,प्राणहीन सा खड़ा था। मैने चारो तरफ नजर दौड़ाई शायद इस झूठी उम्मीद मे की देवांश यहीं कहीं से हमे देख रहा होगा।

 लगा कि अब  समय आ गया है कि मैं भी अपने दोस्त को आखरी बार विदा कर दूँ।

आहूति देते समय मुझे एहसास हो रहा था कि यह हमारा आखरी मिलन है। लेकिन पता नहीं कहाँ से, हवा का एक झोंका आया। चिता की आग भड़की और अनगिनत पतंगे आकाश में उड़ने लगे। जैसे कहीं जा रहे हो, पता नहीं कहां? शायद दूर आकाश मे बहुत दूर। ना जाने कहाँ ? शायद दूसरी किसी दुनिया मे।अंधेरे मे वह इतने सुंदर लग रहे थे जैसे आकाश मे अनगिनत जुगनू अपनी रोशनी फैला रहे हो। 

नहीं ! शायद मैं फिर से गलत था। 

शायद वह देवांश आपकी आत्मा थी जो हम सब को अलविदा कह कर कहीं जा रही थी,दूर ब्रह्मांड में चारों तरफ फैलने के लिए। मैं चुपचाप खड़ा यह नजारा देख रहा था। 

सब वापस घर आ चुके थे। मैं उदास था 

माँ कह रहीं थी कि खाना खा ले ,लेकिन शायद पहली बार मुझे भूख होते हुए भी उसका एहसास नहीं हो रहा था। मैं छत पर जा बैठा और तारे देखने लगा चुपचाप खोया खोया। 

अचानक मेरा ध्यान टूटा। मेरा मोबाइल घनघना रहा था जो साइलेंट मोड पर था। 

स्नेहा का कॉल था। मैंने मोबाइल उठाया देखा और उसे फिर वापस रख दिया। फोन लगातार बजता रहा पता नहीं कब तक। मगर मैं तो आसमान मे चमकते तारों में खोया था। उन्हें बड़े ध्यान से देख रहा था। शायद एक नया तारा ढूंढने की कोशिश कर रहा था•••

बचपन में कहानियों में सुना था कि अच्छे लोग मृत्यु के बाद तारे बन जाते हैं। अचानक ही आकाश में बड़ी रोज तेज रोशनी के साथ एक तारा चमकाऔर आसमान मे अपनी चमक बिखेरता हुआ एक सिरे से दूसरे तक चला गया। 

शायद कोई तारा टूटा था••• 

मैं बड़े ध्यान से देख रहा था। क्योंकि मुझे तो बात करनी थी।

अपने दोस्त से•••

आखरी बार•••

             

                ●●● अंकित चौधरी ●●●

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