रविवार, 26 दिसंबर 2021

लहू

गर्दिश में, हीरा भी धूल हो गया,

मौसम क्या बदला ,चूर-चूर हो गया,

राहगीर पूछते रहे बेताबी में ,पता उसका,

वह कभी मकां था, जो अब ख़राबा हो गया,


एक दरिया लड़ता रहा, रवानी को उम्र भर,

सागर से क्या मिला, खुद से ही जुदा हो गया,

वक्त के थपेड़ों ने लिया था, कभी इम्तिहाँ उसका,

तराशा था जो पत्थर कभी, अब वो ही खुदा हो गया,


जो करता था कभी हिफाज़त चरागों की,

दौर क्या बदला वो हवा हो गया,

वो मुर्दा तड़प रहा है दर्द से अभी,

कत्ल किया था जिसने, अब वो ही गवाह हो गया,

 

सुकूं की नींद में सोया ही था अभी,

फिर जीने मरने का सिलसिला शुरू हो गया,

उम्र भर लड़ते रहे मज़हब के नाम पर, 

लहू जब लहू से मिला तो लहू हो गया,

            

           •••अंकित चौधरी•••


10 टिप्‍पणियां:

  1. कत्ल किया था जिसने अब वही गवाह हो गया...
    वाह।
    लहू जब लहू से मिला तो लहू हो गया...
    कमाल है भाई साब
    उम्दा।

    New- New post - मगर...

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 27 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. Yashoda Agrawalji,हार्दिक आभार रचना साझा करने के लिए 🙏

      हटाएं
  3. सुकूं की नींद में सोया ही था अभी,

    फिर जीने मरने का सिलसिला शुरू हो गया,

    उम्र भर लड़ते रहे मज़हब के नाम पर,

    लहू जब लहू से मिला तो लहू हो गया,

    एक से बढ़कर एक शेर लाजवाब बेमिसाल।👏👏

    जवाब देंहटाएं