मंगलवार, 27 फ़रवरी 2024

एक बार फिर से

झांका हूँ जब-जब मैं दिल की गहराइयों में,

तेरा ही अक्श उभरता रहा है,

नयनो से तेरी ये जो बहता है पानी,

दिल में मेरे यूँ अखरता रहा है,,

जीने ना देती यें भीगी सी पलकें,

विरह की कहानी ये कहता रहा है,

चेहरे पर तेरे ये मायूसी क्यों है ,

लबों पर तेरे ये खामोशी क्यों है,

धूमिल सी क्यों हैं ये चेहरे की लाली,

कहाँ गयी वो अदा लड़कपन वाली,,

सिहरी सी ये धड़कन क्यों है,

अज़ब सी दिल में ये तड़प क्यों है,

क्यों ना सुनता तू मेरे दिल की धड़कन, 

जिस्म में तेरे ये ठंडापन क्यों है,

माहौल इतना गमगीन क्यों है,

मौसम इतना रंगहीन क्यों है,

खाली से क्यों हैं ये सारे चौबारे,

महफ़िल इतनी संगीन क्यों है,

फ़िजा में ये मातम का संगीत क्यों है,

बिखरे से ये मेरे गीत क्यों है,

एक बार फिरसे तू उठकर के आजा,

धड़कते हुए सीने से मुझे गले लगा जा,

कौन अब गलती पर डाँटेगा मुझको,

एक बार तू मुझको बस इतना बता जा,

मिट्टी का ढ़ेर अब लगे जग ये सारा,

तैरा बहुत पर मिला ना किनारा,

जन्नत की मुझको अब परवाह नही है,

मैं वहाँ नही हूँ तू जहाँ नही है,

सूने से हैं ये दर ये दीवारें,

खाली सी चौखट तुम्ही को निहारे,

चाहत है कि तू चुपके से आए,

घायल हृदय को धीर बँधाये,

झेलेगा कौन अब मेरे पागलपन को,

संभालेगा कौन अब मेरे उलझते मन को,

एक बार फिर से तू उलझन सुलझाजा, 

फिर से तू एक बार मेरे पास आजा....

         ***अंकित चौधरी***


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