मंगलवार, 25 जनवरी 2022

सीमा पर एक खड़ा प्रहरी

हाथ में हथियार लिए,

आंखों में अंगार लिए,

सीमा पर एक खड़ा प्रहरी,

दिल में भारत मां का प्यार लिए,

कहानी उसकी तुम्हें सुनाऊ,

सर्दी की थी रात भारी,

आंखों से बहवगे आंसू, 

दिल में फूटेगी की चिंगारी,

सोमवार, 10 जनवरी 2022

जाहिल

 

जाहिल था, 

दिए उनके जहर को ,अमृत समझ कर पी गया,

जर्रा-जर्रा करके बिखरा हूँ पतझड़ की तरहा ,

मासूमियत उनकी -

बोले, जालिम क्या खूब जिंदगी जी गया,

दर्द को क्या समझेंगे मेरे ,वो फूलों पर चलने वाले,

एक कांटा क्या लगा ,

जख्मों को कोई आंसू के मरहम से सी गया,

शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

उड़ जा चिरैया

अचानक माहौल हुआ ये कैसा? 

हवा क्यों खुश्क हो गई? 

आफताब क्यों मंद है?

धरा की सोंधी खुशबू कहां खो गई? 

एक चुनरी तार-तार नजर आई है अभी,

आशियां जला है किसी का ?

या फिर से कोई मासूम अपनी इज्जत खो गई,

सोमवार, 27 दिसंबर 2021

पागल है यह दुनिया सारी

जग है यह अजब निराला ,

क्या मैं भी उस मे खो जाऊं? 

पागल है यह दुनिया सारी ,

क्या मैं भी पागल हो जाऊं? 

पागल है कोई धन के पीछे, 

कोई पागल तन के पीछे। 

कोशिश करें कोई पहाड़ चढ़न की,

कोई पकड़ उसको खींचे।

दौड़ रहा है जग यह सारा ,

क्या मैं भी शामिल हो जाऊं?

रविवार, 26 दिसंबर 2021

लहू

गर्दिश में, हीरा भी धूल हो गया,

मौसम क्या बदला ,चूर-चूर हो गया,

राहगीर पूछते रहे बेताबी में ,पता उसका,

वह कभी मकां था, जो अब ख़राबा हो गया,


एक दरिया लड़ता रहा, रवानी को उम्र भर,

शनिवार, 25 दिसंबर 2021

टूटते तारे (कहानी)

"शिरिर-शिरिर" 

यह आवाज सूचक है, कि सुबह के 7:00 बज चुके है और यह मेरे जागने का समय है। यह आवाज मेरी माता जी की है, जो रोज सुबह मेरे लिए अलार्म का कार्य करती हैं। 

मैं हड़बड़ा कर उठा और बोला - मम्मी ,आपने मुझे फिर देर से उठाया , मुझे आज सुबह 6:00 बजे उठना था। 

यूँ तो मैं रोजाना देर से ही उठता हूँ। पर आज का दिन मेरे लिए कुछ खास है। इसलिए मैं रात को जल्दी ही सो गया था ताकि सुबह जल्दी उठ कर, 9:00 बजे तक अपनी क्लास मे पहुंच सकूं।  क्योंकि आज मुझे स्नेहा का जवाब मिलना था और मैं  रोजाना की तरह कम से कम आज तो लेट नहीं होना चाहता था...

बुधवार, 1 दिसंबर 2021

आहट (उपन्यास )

बहुत दिनों से सोच रहा था कि आप सभी को एक ऐसे सफर पर ले जाया जाए जो रहस्य एवं रोमांच से पूर्ण हो। आखिरकार! मैं आप सभी के समक्ष उपस्थित हूँ अपना उपन्यास "आहट " लेकर। जिसे हमने आप सभी की सुविधा के लिए कुछ भागों मे विभाजित किया है। उन भागो को में क्रमशः प्रकाशित करता जाऊंगा ...

तो तैयार हो जाइए मेरे साथ एक ऐसे रहस्य और रोमांच से भरे सफर पर चलने के लिए ,जो आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाएगा।

                                  भाग-1


पहाड़ी इलाका, ठंड का मौसम ,जंगली पथरीला रास्ता...
उस पर एक घोड़ा-गाड़ी सरपट दौड़ी जा रही है। गाड़ी की छत से पानी की बूंदे चारों तरफ लटकी हैं... 

शायद सर्द हवाओं के कारण वातावरण में उपस्थित वाष्प की बूंदे  द्रवित होकर जम जाने के कारण एकत्रित हो गई हैं और डूबते हुए सूरज के हल्के प्रकाश मे जो पेड़ों के बीच से कभी-कभी प्रकट होता था ,प्रिज्म की तरह कार्य करके अपने प्रकाश से चमकते हुए सफ़ेद मोतियों का भ्रमक  आभास कराती हैं। 

ठंड का असर या शायद सफर की थकान का  असर घोड़ों  पर भी दिखाई पड़ता था जो बहुत ही  सुस्त से हो गए थे। फिर भी चालक जैसे ही उन पर अपने हाथ लगाता वह अपने वेग से दौड़े जाते थे।