वो रेशमी छांव थी या एक तड़प में हंसी,
जिंदगी का ये मौसम बदल-बदल सा गया,
आज फिर से थे वो मेरे आमने-सामने,
दिल ये थम सा गया फिर मचल ही गया,
वो रेशमी छांव...
वो रेशमी छांव थी या एक तड़प में हंसी,
जिंदगी का ये मौसम बदल-बदल सा गया,
आज फिर से थे वो मेरे आमने-सामने,
दिल ये थम सा गया फिर मचल ही गया,
वो रेशमी छांव...
हाथ में हथियार लिए,
आंखों में अंगार लिए,
सीमा पर एक खड़ा प्रहरी,
दिल में भारत मां का प्यार लिए,
कहानी उसकी तुम्हें सुनाऊ,
सर्दी की थी रात भारी,
आंखों से बहवगे आंसू,
दिल में फूटेगी की चिंगारी,
जाहिल था,
दिए उनके जहर को ,अमृत समझ कर पी गया,
जर्रा-जर्रा करके बिखरा हूँ पतझड़ की तरहा ,
मासूमियत उनकी -
बोले, जालिम क्या खूब जिंदगी जी गया,
दर्द को क्या समझेंगे मेरे ,वो फूलों पर चलने वाले,
एक कांटा क्या लगा ,
जख्मों को कोई आंसू के मरहम से सी गया,
अचानक माहौल हुआ ये कैसा?
हवा क्यों खुश्क हो गई?
आफताब क्यों मंद है?
धरा की सोंधी खुशबू कहां खो गई?
एक चुनरी तार-तार नजर आई है अभी,
आशियां जला है किसी का ?
या फिर से कोई मासूम अपनी इज्जत खो गई,
जग है यह अजब निराला ,
क्या मैं भी उस मे खो जाऊं?
पागल है यह दुनिया सारी ,
क्या मैं भी पागल हो जाऊं?
पागल है कोई धन के पीछे,
कोई पागल तन के पीछे।
कोशिश करें कोई पहाड़ चढ़न की,
कोई पकड़ उसको खींचे।
दौड़ रहा है जग यह सारा ,
क्या मैं भी शामिल हो जाऊं?
गर्दिश में, हीरा भी धूल हो गया,
मौसम क्या बदला ,चूर-चूर हो गया,
राहगीर पूछते रहे बेताबी में ,पता उसका,
वह कभी मकां था, जो अब ख़राबा हो गया,
एक दरिया लड़ता रहा, रवानी को उम्र भर,
"शिरिर-शिरिर"
यह आवाज सूचक है, कि सुबह के 7:00 बज चुके है और यह मेरे जागने का समय है। यह आवाज मेरी माता जी की है, जो रोज सुबह मेरे लिए अलार्म का कार्य करती हैं।
मैं हड़बड़ा कर उठा और बोला - मम्मी ,आपने मुझे फिर देर से उठाया , मुझे आज सुबह 6:00 बजे उठना था।
यूँ तो मैं रोजाना देर से ही उठता हूँ। पर आज का दिन मेरे लिए कुछ खास है। इसलिए मैं रात को जल्दी ही सो गया था ताकि सुबह जल्दी उठ कर, 9:00 बजे तक अपनी क्लास मे पहुंच सकूं। क्योंकि आज मुझे स्नेहा का जवाब मिलना था और मैं रोजाना की तरह कम से कम आज तो लेट नहीं होना चाहता था...