बुधवार, 5 सितंबर 2018

हैरान हूँ मैं, परेशान हूँ मैं

हैरान हूँ मैं , परेशान हूँ मैं,
दर्द को शब्द कहाँ से दूँ , बेजुबान हूँ मैं ,
शबे-फिराक आयी है , गम ये साथ लायी है,
पर खुश हूँ सोच कर ,कि अब आजाद हूँ मैं ,

रूसवाइयाँ तेरी ये सहते-सहते ,
ढलां हूँ इस कदर,
जैसे मकां कोई बचा हो बाढ़ मे रहते-रहते ,

जुर्रत क्या मेरी बेवफा कहूँ तुझे,
मजलूम कहूँ खुदको या मगरूर कहूँ तुझे,
पर अना मेरी मुझको ये इजाजत नही देती ,
दिलकस  कहूँ ,या दिलरुबा कहूँ तुझे ,

अज़ब आलम़ है,बेबसी का मेरी ,
साथ होती है वो,मगर साथ  नहीं होती ,
तेरी शबीह धुंधलाई है आ पौछ दूँ इसे,
कि मरकर भी रूह कभी आजाद नही होती ,

एहतेजाज से रहो, कि नमी ना आये कभी पेशानी पे,
बेरूखी हो तो ऐसी हो, कि नादिम ना हो कभी ,
इल्तजा है कि फिर ना आना मेरे नशेमन मे,
कच्चा फूँस का बना है,
कि तेरी मिशअलें तेज क्या हुई जल जायेगा ,

*** अंकित  चौधरी ***

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