हैरान
हूँ मैं , परेशान हूँ मैं,
दर्द को
शब्द कहाँ से दूँ , बेजुबान हूँ मैं ,
शबे-फिराक आयी है , गम ये साथ लायी है,
पर खुश
हूँ सोच कर ,कि अब आजाद हूँ मैं ,
रूसवाइयाँ तेरी ये सहते-सहते ,
ढलां हूँ
इस कदर,
जैसे
मकां कोई बचा हो बाढ़ मे रहते-रहते ,
जुर्रत
क्या मेरी बेवफा कहूँ तुझे,
मजलूम
कहूँ खुदको या मगरूर कहूँ तुझे,
पर अना
मेरी मुझको ये इजाजत नही देती ,
दिलकस कहूँ ,या दिलरुबा कहूँ तुझे ,
अज़ब आलम़ है,बेबसी का मेरी ,
साथ होती है वो,मगर साथ नहीं होती ,
तेरी
शबीह धुंधलाई है आ पौछ दूँ इसे,
कि मरकर
भी रूह कभी आजाद नही होती ,
एहतेजाज
से रहो, कि नमी ना आये कभी पेशानी पे,
बेरूखी
हो तो ऐसी हो, कि नादिम ना हो कभी ,
इल्तजा
है कि फिर ना आना मेरे नशेमन मे,
कच्चा
फूँस का बना है,
कि तेरी
मिशअलें तेज क्या हुई जल जायेगा ,
*** अंकित चौधरी ***
ढ़ला हूँ इस क़दर
जवाब देंहटाएंजैसे मकाँ कोई बहा हो बाढ़ में रहते -रहते
बहुत ख़ूब
बहुत बहुत धन्यवाद!
हटाएंबेहतरीन रचना 👌👌👌
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
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