गुरुवार, 27 सितंबर 2018

नारी तेरी यही कहानी


हाय नारी तेरी यही कहानी ,
चेहरे पर हँसी नयनो मे पानी,   
कर करे सहज ही वंदन ,
हृदय में टीस उठे ,
हिया करे करुण क्रंदन,
दुनिया में सुना रही,
सनातन करुण गान,  
पौरुष जीवन मे ढूँढ रही,
अपना छोटा सा पावन स्थान, 
असहाय कुंती ! कर्ण-अर्जुन मे,
अपनी ममता को मोल रही ,
हाय ! क्या विकट स्थिति ,
पन्ना लाल अपने को शमशीर की धार पर तोल रही,
जग कहे माता सारा -
फिर क्यों सीता अग्नि -परीक्षा को झेल रही,
अज़ब  समाज ,गज़ब नज़ारे ,  
सब गूंगेबहरे ,
नारी व्यथा को कौन विचारे ?  
जो हार बैठा स्वाभिमान , 
भला वो अब और क्या हारे ?  
बिछी पड़ी अकर्मण्यता की शतरंज ,  
मानवता हो रही शर्मसार बीच चौबारे,   
युधिष्ठिर बन बैठा दुर्योधन ,
रोती द्रोपती सहायतार्थ किसे पुकारे ?

जाने कौन सा जहां होगा वो ,
जहा गिरती है सुखद फुहारे  ? 
हाय ! क्या कलयुग आया 
अब तो आहें भरे है वक्त के धारे, 
क्यों पूत की बांध कर झोली,
कोई रानी घोडा रण में उतारे ?
क्यों भक्ति मे भी मीरा 
करके विषपान जान हारे ?  
क्यों चारों ओर,
दरिंदगी घिनौना खेल खेले है ?
क्यों छ: साल की मासूम ,
दुष्कर्म का दंश झेले हैं ?

क्यों है शांत ,
अपने को पुरुष कहकर करने वाले गुनगान ?
क्या गिरता नहीं पढ़ कर,
कतरन अखबारों की नित अभिमान ?  
पानी क्यों हुई उबलती रक्त की धारे ?
अब तो बहने दो कही से बदलाव की बयारे,
झुठलाकर माँ के दूध की कहावत ,  
कैसे निकलोगे जग मे ,
ये भारी कलंक सर पर धारे ?  
बहना मांग रही है कीमत ,
राखी के मान की ,
बूढी माँ देख रही है राह,
बेटों से नारी के सम्मान की,

   *** अंकित चौधरी ***


 

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