सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

महफ़िल मे नाम ना उछालो यूँ

महफ़िल मे नाम ना उछालो यूँ ,
इसां हूँ ,इसां ही रहने दो , 
शोहरत अकेला कर देती ,
गुमनाम हूँ ,गुमनाम ही रहने दो ,

छलकता मय का प्याला ,
छींटे उड़ा ना गैरो पर ,  
डर लगता शराफत से मुझको ,
शराफत का समां है जोरो पर ,
अब तो आँखें भी छलक उठीं मेरी  ,
ये पीड़ा अब मुझको सहने दो,
बदनाम हूँ , बदनाम ही रहने दो,

 बस अपनी खबर नहीं मुझको ,
खबर रखता ज़माने की सारी , 
टकराता पर्वत से यूँ ही ,
है वीरानों से अपनी यारी ,
बहता दरिया हूँ , मत रोको मुझे ,
बहता हूँ बस , यूँ ही बहने दो ,

अब तो ना रोको मुझको यूँ ,
जो कहनी है बात वो कहने दो, 
पत्थरों से चिनवाओ मुझे ,
या ज़र्जर मकां सा ढहने दो ,
इश्क ख़ता है गर मेरी ,
तो मुझको सज़ा मे रहने दो ,
गर बर्बादी तकदीर मेरी ,
जो सहता हूँ ,वो सहने दो ,

ओरो से क्या लेना मुझको  ,
जो कहता है वो ,उसे कहने दो,
दिल पर ना लेना बातों को,
बातों  में घुमाव जरा रहने दो,
मत घेरो दुनियादारी मे,
अनजान हूँ ,अनजान ही रहने दो!!!

***अंकित चौधरी ***

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना 🙏

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  2. भावपूर्ण अभिव्यक्ति , अति सुंदर सृजन ।

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