शनिवार, 13 अक्तूबर 2018

बिरहा की अग्नि मे जलता मेरा मन


बिरहा की अग्नि मे जलता मेरा मन ,
ये ना बुझी है , ये ना बुझेगी ,
सांसो की लड़ियाँ जो टूटी सी है ,
ये ना जुडी है ये न जुड़ेगी ,


मुस्कान तेरी जो बिखरी नहीं है ,
सूनी डगर हैं है वीरान मंजिल,
मन के बागों मे खिलनी थी जो कलियाँ,
वो ना खिली है , वो ना खिलेंगी ,

चाहता हूँ ये कि भुला दूँ मैं तुझको ,
जो यादें दफ़न है , मिटा दू मैं सबको ,
आँखों पर गिरा दूँ , फरेबी एक पर्दा,
हटा दूँ तेरी मूरत , करु फिर ना सजदा ,
पर तन्हाईयाँ मेरी जिद पर अड़ी हैं ,
तेरी परछाईयाँ मुझको घरे खड़ी हैं ,
चादर पर फैली ये जो मैली से सिलवट,
ये ना मिटी है ,ये ना मिटेंगी,

पथरीला रास्ता लम्बा सफर है,
संग चले जिस सफर पर ,
ना है वो मंजिल ना वो डगर है,
पैरो मे पड़कर  फूटे  हैं छाले,
मझधार है, बस ना हैं किनारे,
चाहे चलना ,पर चले कोई कैसे,
लोग बहुत है ,पर ना हैं सहारे,
कश्ती ये मेरी जो टूटी हुई है,
सागर से कैसे ये पार उतारे,
तेरे  मिलने की राह मे,
जो है उम्मीद दिल मे ,
ये ना मरी है , ये ना मरेगी,

मिट्टी का ढेर अब लगे जग ये सारा,
तैरा बहुत पर मिला ना किनारा ,
जन्नत की मुझको अब परवहां नहीं है,
मैं वहाँ नहीं हूँ , तू जहाँ नहीं है ,
सूने से है ,ये जो दर ये दीवारें,
खाली सी चौखट तुझी को निहारे,
चाहत है कि तू चुपके से आए,
घायल हृदय को  धीर बँधाये,
बिरहा के श्याह धब्बे ,
बिखरे जो मन पर,
ये ना धुले है ,ये ना धुलेंगे।

 ***अंकित चौधरी***

18 टिप्‍पणियां:

  1. मन के भावों को बखूबी दर्शाती रचना.।

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  2. मिट्टी का ढेर अब लगे जग ये सारा
    तैरा बहुत पर मिला ना किनारा ।
    जन्नत की मुझको अब परवहा नहीं है
    मै वहाँ नहीं हु तू जहाँ नहीं है । बेहतरीन रचना

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  3. मै वहाँ नहीं हु तू जहाँ नहीं है ।
    सुने से है ये दर ये दीवारे
    खाली सी चौखट तुझी को निहारे।
    चाहत है के तू चुपके से आये
    घायल हृदय को धीर बँधाये।
    बिरह के श्याह धब्बे ,बिखरे जो मन पर
    ये ना धुले है ये ना धुलेंगे।!!!!
    बहुत ही मार्मिक रचना प्रिय अंकित जी -- पर मुझे लगता है तीसरी पंक्ति में --''सासों की लड़ियाँ '' आश की लड़ियाँ होती तो बेहतर था | मर्मस्पर्शी सृजन के लिए सस्नेह बधाई और शुभकामनाये |

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    1. बहुत सुन्दर सुझाव ,लिखते वक्त गहराई मे चला गया था अतः सांसो की लड़ियाँ तोड़ बैठा। वैसे अगर प्रिय अपने जीवन के अंतिम छन मे अपनी प्रयतमा को याद कर रहा है ऐसी कल्पना करके पढ़ा जाए तो शायद इतनी बुरी नहीं लगेगी , आभार आपका सादर...

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  4. वाह

    बहुत ही उम्दा साहब ,

    हरेक line पे अगर दाद देदू तो वो भी काम पड़ेगी


    पथरीला रास्ता लम्बा सफर है
    संग चले जिस सफर पर ,
    ना है वो मंजिल ना वो डगर है।

    बेहतरीन

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  5. पथरीला रास्ता लम्बा सफर है
    संग चले जिस सफर पर ,
    ना है वो मंजिल ना वो डगर है।
    पैरो में पड़कर फूटे है छाले
    मझधार है बस ना है किनारे।...
    वाह सर, सुंदर रचना

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  6. प्रेम समर्पण और ख़ुद से बातें करती रचना ...
    पर अहमआता है आड़े यही जीवन की इंसानी रीत भी है ...

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