आपस में है प्यार बहुत,
बस प्यार जताना भूल गए,
चाह बहुत संग जीने की ,
बस साथ निभाना भूल गए,
आह एक अकुलाई सी,
जब देखी आँख पथराई सी,
एक टीस उठी जब चोट लगी,
बस दर्द बताना भूल गए,
एक मंजिल पर थे यूँ निकले ,
उठते गिरते बदहवास हुए ,
जब दिखा सामने एक भटका रही ,
तो रहा बताना भूल गए,
आंधी का जब दौर चला ,
तब खामोशी का शोर चला,
मन चाहा जग उजियारा कर दें,
बस दिया जलाना भूल गए,
एक फूल(दोस्त) मिला मुरझाया सा,
कुछ उलझा सा कुम्हला सा,
सोचा कुछ धीर धरें, कुछ सहारा दें,
बस गले लगाना भूल गए,
जब बात चली इंसान की,
संस्कृति से पहचान की ,
अपने जमीर-इमान की ,
नारी-वीर सम्मान की ,
जो ना करना था वह भी कर डाला,
बस सम्मान जताना भूल गए,
जब खबर उठी अंधियारों से,
दहशत के गलियारों से ,
एक दबी चिंगारी सुलग उठी,
एक अज़ब सा शोर हुआ,
इधर धुआं उठा , उधर आग लगी ,
जोश मे आए चाहा बहुत ,
बस होश में आना भूल गए..
*** अंकित चौधरी***
बस ये भूल ही तो इंसान को इंसान बनने से रोके हुए है...जरूरत के समय भूल जाते हैं कि कैसे किसी के काम आना है।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
लाजवाब सृजन
आजकल का चलन है,इंसान थोड़ा-बहुत स्वार्थी हो गया है,
हटाएंरचना सरहाने के लिए हार्दिक आभार 🙏
👌👌👌
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद
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