गुरुवार, 11 नवंबर 2021

ग़र अज़ीज हो मेरे

 

रात घटाएँ आई थी घिरकर, 

हँवाओ मे अज़ब शोर था ।

वो आकर लौट गए दर से मेरे,

हम समझे कि कोई ओर था।

अफ़साना बन भी जाता कोई, 

कुछ मेरी बेख्याली शायद, 

कुछ रुसवाई का दौर था।।


सोचते है ना ख्याल आये उसका ,

पर बेख्याली मे भी ख्याल आता है।

मैं खुद को लिखता हूँ रोज हर्फ़ - हर्फ़,

वो एक झटके मे मिटा जाता है।

शर्मिंदा आईने टूटे,

पर्दे डाल ले चिलमन।

झलक एक जो दिख जाए, 

तेरा चेहरा जो चमक जाता है।।



सितारे फलक से उतरे,

कभी आओ जो महफ़िल मे।

भँवरे पागल हो जाए, 

कभी जाओ जो गुलशन मे।

कभी तुम छत पर मत आना,

चाँद  छुप जायेगा बादल मे।

तुम्हारा कुछ ना जायेगा,

नुकसां ओरो का होगा यूं।

कोई आशिक ईद मना लेगा,

इसी मुग़ालत मे।।


उम्मीदे टूटी रहने दो,

इन्हे तुम जोड़ते क्यूँ हो।

ग़र मंजिल एक है अपनी,

तो राहे मोड़ते क्यूँ हो।

हमे फकीरी की आदत है,

ख्वाब दिखाओ ना जन्नत के।

ग़र आये हो सजदे मे,

फिर इबादत तोड़ते क्यूँ हो।।


आहट कोई ना करना,

डर लगता है हर आहट से।

आहें कोई ना भरना,

चोट लगती है आहों से।

लज्जाती पलके झुकी - झुकी,

सुर्ख लाली दमकी है गालो से।

मुरझाए से क्यूँ हो,

पत्ता जैसे टूटा हो कोई शाखो से।

आब-ए-चश्म क्यूँ बरसे है,

बरबस तुम्हारी आँखो से।।


ग़र अज़ीज हो मेरे,

दूर फिर दौडते क्यूँ हो।

ग़र अफसोस है इतना,

हाथ फिर छोडते क्यूँ हो।

यूँ हाथ छुडाने से,

रिश्ते छूट नही जाते।

गर्दिश मे आने से,

सितारे टूट नही जाते।

ग़फलत मे ना आना तुम,

सागर की फितरत से।

ग़र दरिया सागर मे मिल जाए, 

तो दरिया डूब  नही जाते।

ग़र लहरो से डरते हो,

तो नाव फिर उतारते क्यूँ हो।

ग़र दुनिया से डरते हो,

तो जान फिर  वारते क्यूँ हो।।


   ** अंकित चौधरी **

https://youtu.be/B3Kgftzyl8g



10 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१२-११-२०२१) को
    'झुकती पृथ्वी'(चर्चा अंक-४२४६)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. उम्मीदे टूटी रहने दो,
    इन्हे तुम जोड़ते क्यूँ हो।
    ग़र मंजिल एक है अपनी,
    तो राहे मोड़ते क्यूँ हो।
    हमे फकीरी की आदत है,
    ख्वाब दिखाओ ना जन्नत के।
    ग़र आये हो सजदे मे,
    फिर इबादत तोड़ते क्यूँ हो।।
    भावनाओं से ओतप्रोत बहुत ही मार्मिक व उम्दा सृजन

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  3. वाह!!!बहुत ही लाजवाब एवं भावपूर्ण सृजन।

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  4. मन के गहरे भावसिक्त एहसासों का सृजन । मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है ।

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