बुधवार, 1 दिसंबर 2021

आहट (उपन्यास )

बहुत दिनों से सोच रहा था कि आप सभी को एक ऐसे सफर पर ले जाया जाए जो रहस्य एवं रोमांच से पूर्ण हो। आखिरकार! मैं आप सभी के समक्ष उपस्थित हूँ अपना उपन्यास "आहट " लेकर। जिसे हमने आप सभी की सुविधा के लिए कुछ भागों मे विभाजित किया है। उन भागो को में क्रमशः प्रकाशित करता जाऊंगा ...

तो तैयार हो जाइए मेरे साथ एक ऐसे रहस्य और रोमांच से भरे सफर पर चलने के लिए ,जो आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाएगा।

                                  भाग-1


पहाड़ी इलाका, ठंड का मौसम ,जंगली पथरीला रास्ता...
उस पर एक घोड़ा-गाड़ी सरपट दौड़ी जा रही है। गाड़ी की छत से पानी की बूंदे चारों तरफ लटकी हैं... 

शायद सर्द हवाओं के कारण वातावरण में उपस्थित वाष्प की बूंदे  द्रवित होकर जम जाने के कारण एकत्रित हो गई हैं और डूबते हुए सूरज के हल्के प्रकाश मे जो पेड़ों के बीच से कभी-कभी प्रकट होता था ,प्रिज्म की तरह कार्य करके अपने प्रकाश से चमकते हुए सफ़ेद मोतियों का भ्रमक  आभास कराती हैं। 

ठंड का असर या शायद सफर की थकान का  असर घोड़ों  पर भी दिखाई पड़ता था जो बहुत ही  सुस्त से हो गए थे। फिर भी चालक जैसे ही उन पर अपने हाथ लगाता वह अपने वेग से दौड़े जाते थे।

गाड़ी की खिड़कियां दो तरफ है जो कांच जड़ी हैं। उसमें हमे एक व्यक्ति बैठा दिखाई देता है जो शायद अब कुछ बेचैन सा हो चुका है।

नाम है..."सुचित"

सुचित खिड़की से बाहर देखकर समय का अंदाजा लगाने की कोशिश करता है,अंधेरा सा होने वाला है, शायद 5:00 बजे होंगे!

क्योंकि जनवरी का महीना है और पहाड़ी इलाकों में सूर्य देव कुछ जल्दी मे ही रहते हैं...

उसने चालक से पूछा ...ओर कितना समय लगेगा?

पहुंच ही गए बाबूजी... बस कुछ बखत ओर..

यह सुनकर सुचित को कुछ सांत्वना मिली। और वह अपने ख्यालों में खो गया...वह एक अच्छा खासा जासूस है। कुछ अच्छे केश सुलझा भी लिए थे उसने, अतः एक अच्छी खासी पहचान बन गई थी उसकी, पिछले कुछ समय से इतना व्यस्त था कि जरा भी फुर्सत नहीं थी उसे,अब वह कुछ समय आराम से बिना किसी चिंता के सुकून से बिताना चाहता था।

पहाड़ उसे हमेशा  ही आकर्षित करते रहे हैं। मनमोहक हरियाली, सुकून और सुंदरता की छटा बिखेरते। 

यह एक ऐसी रहस्य में सुंदरी की तरह होते हैं,जिसके पास हमेशा एक दिल को थाम देने वाली रहस्यमय मुस्कान होती है जो सुकून तो देती है पर अगले ही क्षण संकित भी करती है... और आप पूरी जिंदगी एक-एक करके इसकी परतें उतारते जाओगे और एक नया रहस्य मिलता जाएगा।

सुचित को और क्या चाहिए था, तो चल पड़ा अपने साथ कुछ पुस्तकों का ढेर लेकर ।उसकी इच्छा थी कि कहीं अति सर्द इलाके में जलती अंगीठी के पास बैठकर पुस्तक पढ़ते हुए कुछ दिन बिताने की या वह पूरे दिन यूँ ही कंबल तान कर पडा रहा करेगा  बिना किसी भूत और भविष्य की चिंता के और अचानक निकल जाया करेगा किसी निर्जन पहाड़ी स्थान की सैर करते हुए प्रकृति की गोद मे खो जाने के लिए।

अतः उसने अपने काम से फुर्सत मिलते ही अपना बैग पैक किया और आ गया यहां, जहां कोई उसका नाम तक नहीं जानता था। उसने अपनी डायरी निकाली और रास्ते के अनुभव लिखने शुरू कर दिए। उसकी हमेशा आदत रही है कि वह अपने पूरे दिन की मुख्य बातें उस पर लिख देता था। उसका लिखना तब अचानक बंद हुआ जब गाड़ी चालक ने कहा... बाबूजी बस पहुंच ही गए...

                                   *****

सुचित ने नजर उठा कर बाहर देखा। कुछ मकान दिखने शुरू हो गए थे।यह एक छोटा कस्बा था जिसमें छोटे मगर सुंदर मकान बने हुए थे। जिनकी छत ढ़लावदार थी। वे कस्बे की मुख्य सड़क पर चल रहे थे। अब तक काफी अंधेरा हो चुका था। जो पेड़ दिन के समय अपने झुंड में सुंदर दिखते थे। अंधेरे मे वह अब अपनी काली परछाई से भयानक और डरावने दिखाई दे रहे थे।

अचानक! उसकी नजर दूर एक बड़े चबूतरे पर टिक गई, जो रोशनी से जगमगा रहा था। इसके चारों तरफ एक बड़ा अहाता था तथा उस पर एक हवेलीनुमा भव्य इमारत बनी थी जो मुख्य सड़क के दाएं ओर से जाती एक छोटी सड़क पर कुछ दूरी पर थी। 

सुचित का ध्यान उस पर इसलिए गया। क्योंकि एक तो वह अकेली इमारत थी जो इस इलाके मे इतनी बड़ी और भव्य थी, दूसरा वह आम बस्ती से अलग थी।

इसके आसपास कोई और मकान दूर तक नहीं था। वह कई मंजिला इमारत अपने प्रकाश से जगमगा रही थी।

सुचित ने उत्सुकता वश गाड़ी चालक से पूछा... वह क्या है?

गाड़ी चालक ने कहा...साहब, सूर्य प्रताप सिंह की हवेली है... बड़े लोग,बड़ी जायदाद, बड़े शौक... किसी जमाने में अंग्रेजों के मददगार थे, अंग्रेजों की कृपा दृष्टि रही उन पर हमेशा...प्रभाव बढ़ता गया और यहां के जमींदार कहलाने लगे। लोगों पर इनका हुकुम चलता गया उन पर जातियाँ करने लगे बहुत ही निर्मम किस्म के लोग हैं।

पता है! लोगों पर कर तक लगा दिया था, गुलामों की तरह व्यवहार करते थे सबके साथ।

गहरी सांस लेकर... अब जाकर भगवान ने सुनी है...

चौंककर, बात बीच में काटते हुए सुचित ने पूछा ...क्यों, अब क्या हो गया?

गाड़ी चालक...उस हवेली में कोई प्रेत आत्मा है जो उन्हें सबक सिखा रही है,

यह प्रेतात्मा वगैरह कुछ नहीं होता... सूचित ने कहा।

नहीं! सब लोग जानते हैं साहब।गाड़ी चालक घबराते हुए बोला... अंधेरा होने के बाद कोई नहीं जाता उधर!शायद उन्हीं किसी की आत्मा होगी, जिन पर इन्होंने अत्याचार किए हैं...पाप का फल तो भुगतना ही पड़ता है...

सुचित भूत प्रेत को नहीं मानता था फिर भी उसकी दिलचस्पी उनके बारे में और जानने की हुई। वह कुछ और पूछ पाता इससे पहले गाड़ी चालक ने कहा...लो साहब ,आ गया आपका कॉटेज।

                            *****

गाड़ी रुक चुकी थी। सुचित उतरा ,अपना सामान लिया और एक गहरी सांस लेकर बोला आखिरकार...

फिर उसने अपनी नजर चारों तरफ घुमाई यह एक सुंदर स्थान था। घुमावदार रास्ता कॉटेज के पास से उसे दो तरफ से घेरता हुआ निकल गया था। वातावरण बिल्कुल शांत था। कॉटेज में कुछ ही कमरे होंगे जिनकी बड़ी-बड़ी खिड़कियां बाहर से दिखाई दे रही थी। यह सड़क से थोड़ी ऊंचाई पर था जो पहाड़ का ढलान काट कर थोड़ी जगह समतल करके बनाया गया था। चबूतरे पर हल्की दो-तीन फिट की बाढ़नुमा चारदिवारी थी।

सड़क से ऊपर जाने के लिए कुछ सीढ़ियां थी। सीढ़ियों से ऊपर कॉटेज का गोलाकार  मुख्य गेट था , जिस पर  लिखा था "हिमगिरी कॉटेज"। 

सुचित चबूतरे पर पहुंचा और देखा...पीछे ढाल नुमा पहाड़  और आगे सड़क के दूसरी तरफ गहरी घाटी थी। उसका ध्यान घाटी में चमकते प्रकाश ने आकर्षित किया।   ओह!यह तो वही हवेली है...यहां से ऊंचाई अधिक होने के कारण साफ दिखाई पड़ रही है। 

वह अपने ख्यालों में खोया हुआ ही था कि उसका ध्यान पीछे से किसी के हाथ के स्पर्श के एहसास के साथ टूटा।  वह चौंक कर पीछे पलटा।

देखा एक दुबला सा अधेड़ उम्र का आदमी खड़ा है।

साहब अंदर आ जाइए ठंड बहुत है। सुबह देखिएगा बहुत ही सुंदर है...

सुचित को ठंड का एहसास हुआ जो कुछ ज्यादा ही

थी,और वह उस आदमी के पीछे अंदर काॅटेज में प्रवेश कर गया।

                                 *****

साहब, मेरा नाम रामचरण है ...मैं ही इस कॉटेज का मालिक हूँ... कुछ रुक कर बोला, आप शायद सूचित साहब हैं...

यह सुनते ही सुचित चौक गया। क्योंकि ना ही उसकी पहले से कोई बुकिंग थी? वह शायद इसलिए कि वह कुछ ज्यादा ही बेफिक्र होकर रहना चाहता था बिना किसी योजना के और ना ही अभी तक उसने अपना नाम बताया था।

सुचित उस साधारण से आदमी की असाधारण बात पर हैरान होते हुए बोला... भाई ,जासूसी तो हम करते हैं आपने कैसे पता लगाया कि मेरा नाम सुचित है?

अब जब रामचरण ने हंसते हुए उसके हाथ की तरफ इशारा किया तो उसे अपनी ग़लती का अहसास हुआ।

दरअसल सुचित अभी भी वही डायरी अपने हाथ मे लिए हुए था, जिसे वह गाड़ी मे लिए हुए था और उस पर उसका नाम लिखा हुआ था। जो वह जल्दबाजी मे गाड़ी से उतरते वक्त रखना भूल गया था।

रामचरण- तो साहब कितने दिन के लिए आए हैं?

सुचित- कुछ मालूम नहीं शायद 15 या 20 दिन या फिर महीना या उससे भी ज्यादा दरअसल अभी तक मुझे भी नहीं मालूम।

रामचरण- तो फिर शायद किसी जरूरी काम से आए हैं जासूसी... यह कहकर रामचरण कुछ रुका।

सुचित ने उसकी शंका का समाधान करते हुए कहा... उसी से तो पीछा छुड़ा कर यहाँ आया हूँ ,कुछ दिन सुकून के लिए।

रामचरण- फिर तो आपने अच्छा किया...यहाँ से ज्यादा सुकून आपको कहाँ मिलेगा...जब तक मन चाहे रहो...मैं तो कहता हूँ कि आपका वापस जाने का मन ही नहीं करेगा।

सुचित मुस्कुराया और बोला... मेरे लिए एक एसे कमरे का प्रबंध करो जहां से घाटी का सबसे अच्छा नजारा दिखाई दे...और हाँ ! कुछ गरमा-गरम खाने का भी इंतजाम करो।

                           *****

कुछ देर बाद सुचित अपने कमरे का जायजा ले रहा था। यह पहली मंजिल पर कॉर्नर का कमरा था। एकदम साफ सुथरा। दो बड़ी खिड़कियां थी जिनसे घाटी साफ दिखाई देती थी। दो दरवाजे एक अंदर की तरफ तथा एक बाहर घाटी की तरफ झरोखे पर खुलता था। एक बेड पर सुसज्जित गर्म बिस्तर। कुर्सी, टेबल तथा अलमारी जिसमें उसने आते ही अपनी पुस्तके सजा दी थी।अंगीठी जो उसके आने के बाद जलाई जा चुकी थी जिसकी चिमनी छत से होकर जा रही थी।

तभी रामचरण खाना लेकर खुद आ गया। सुचित की तरफ चाय बढ़ाता हुआ बोला... साहब किसी चीज की जरूरत हो तो बता देना।

सुचित- क्या तुम अकेले रहते हो यहाँ?

रामचरण - मेरे अलावा दो चार लोग और हैं देखभाल के लिए। वैसे भी इस मौसम में यहाँ कम ही लोग आते हैं, ज्यादा ठंड हो जाती है ना। कभी-कभी बहुत ज्यादा बर्फ पड़ती है। 

सुचित- इन दिनों तो धुंध हो जाती होगी?

रामचरण- नहीं साहब, धुंध बरसात के मौसम मे होती है, सर्दियों मे इतनी धुंध नहीं होती। यहाँ मैदानी इलाकों के उलट होता है, बस सर्दियों में बर्फ गिरती है। 

सुचित - सुबह मैं देर तक उठूंगा, तो मुझे कोई डिस्टर्ब ना करें।

रामचरण- जी। 

खाने ने उसे कुछ गरमाहट दी फिर भी ठंड ने असर दिखाया और सफर की थकान के कारण वह जल्द ही बिस्तर मे चला गया और सो गया।

                               *****

सुबह के 6:00 बजे हैं। सुचित अपने बिस्तर पर आराम से सोया हुआ है। सूर्य की नर्म किरनें खिड़कियों से छनकर उसके बिस्तर पर पड़ रही हैं। तभी दरवाजे के जोर-जोर से खटखटाने की आवाजा आती है, जैसे उसे कोई बेतहाशा पीटे जा रहा हो।

सुचित जी...सुचित जी... जल्दी उठिए... आपसे कोई मिलने आया है...

सुचित हड़बड़ा कर उठा।

उसने सोचा यहाँ तो कोई उसे जानता भी नहीं ,फिर इतनी सुबह उससे मिलने कौन आ गया।

उसने हैरान होकर पूछा ...कौन आया है?

बाहर से आवाज आई ...सूर्य प्रताप सिंह ...

                           क्रमशः

( आखिर सूर्य प्रताप सिंह इतनी सुबह सुचित से मिलने क्यों आए हैं? क्या घट रहा है हवेली में जो लोग इतना डरते हैं? क्या असल में कोई प्रेतात्मा है या कोई और रहस्य है? सुचित नही जानता कि वह किस मुसीबत मे पडने वाला है,आगे क्या होगा सुचित का... जानने के लिए  जुडे रहिए हमारे साथ, जल्द ही मुलाकात होगी अगले भाग मे..)


                          *** अंकित चौधरी ***


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