अचानक माहौल हुआ ये कैसा?
हवा क्यों खुश्क हो गई?
आफताब क्यों मंद है?
धरा की सोंधी खुशबू कहां खो गई?
एक चुनरी तार-तार नजर आई है अभी,
आशियां जला है किसी का ?
या फिर से कोई मासूम अपनी इज्जत खो गई,
झुकी शर्मिंदा पेड़ों की शाखें हैं,
बेकद्र हुई हर आहें हैं,
गुब्बार भय का उठता है,
नाउम्मीदी चीखें मारे हैं,
है दहशत मे निगहबाँ कलियों का,
है चुभता सूनापन अब गलियों का,
कुछ वहां हालात के मारे हैं,
कुछ आंखें अपनों को निहारे हैं,
एक चिंगारी क्या सुलगी?
जाने हवा कब आंधी हो गई?
जिसे कहते थे कभी गुंडागर्दी,
जाने कब वो आजादी हो गई?
जो बातें करते थे कभी मोहब्बत की,
आज हाथों में उनके मौत का सामान है,
नफरत फैली है यहां बस,
हर इज्जत यहां नीलाम है,
आवाजें दब सी जाएंगी,
उम्मीदें ना कर इस शोर में,
जा उड़ जा चिरैया,
जहां किसी और में।।
आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
*** अंकित चौधरी ***
चिड़िया तो उड़ ही जाना चाहती है लेकिन गिद्ध इंसान नहीं बन सकते ।
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी रचना ।
आदरणीया,रचना सरहाने के लिए हार्दिक आभार 🙏
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०१ -०१ -२०२२ ) को
'नए वर्ष की ढेर शुभ-कामनाएँ'( चर्चा अंक-४२९६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है। सादर
आदरनीया,रचना सम्मलित करने के लिए हार्दिक आभार 🙏
हटाएंवाह वाह वाह
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय 🙏
हटाएंबहुत बेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया🙏
हटाएंहृदय स्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंयथार्थ पर गहरा प्रहार।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं आपको सह परिवार जनों के।
रचना सराहने के लिए हार्दिक आभार, एवं आपको भी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं🙏
हटाएं👌👌👌
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार 🙏
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