मंगलवार, 25 जनवरी 2022

वो रेशमी छांव थी

वो रेशमी छांव थी या एक तड़प में हंसी,

जिंदगी का ये मौसम बदल-बदल सा गया,

आज फिर से थे वो मेरे आमने-सामने,

दिल ये थम सा गया फिर मचल ही गया,

वो रेशमी छांव... 


ये बारिशें मंद-मंद वो लरजती हवा , 

नयनों से दरिया बहा फिर छलक ही गया,

शबनमी बूंद थी अभी पंखुड़ियों पर खिली,

एक कतरा यूं हंसा और फिसल ही गया,

वो रेशमी छांव थी... 


आए तारे भी अब तो संग यह सौगात ले,

आशियां में चांदनी जिंदगी यूं साथ ले,

निहारु चुपके से कि छूने से मुरझाएँगे,

भरलूं आगोश में कि बिखर ही जाएंगे,

हाथ जैसे ही बढ़ाया कि लपक ही लूं, 

वो  तारा यूं चमका की चटक ही गया ,

 वो रेशमी छांव थी...

       ***अंकित चौधरी***

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