रविवार, 27 अगस्त 2023

भौतिक जगत

भौतिक जगत में उतर आए,

क्यों तुम प्रसिद्धि के पंख लगा कर? 

लौट चलो प्रकृति की तरफ,

पावन, सुलभ चरण बढ़ाकर। 

अलौकिक सौंदर्य खोज रहा,

तुम्हें पलकें बिछाकर। 

खो जाओ तुम भी उसमें, 

जीवन की चाह भुला कर।

विचरों कभी,  रात्रि के आगोश में,

सो जाओ रखकर सर , प्रकृति की गोद में। 

देखो ! फलक पर उतरे सितारे, 

लगते कितने आकर्षक। 

दूर क्षितिज में चमकता तारा,

होगा पथ प्रदर्शक। 

उछलते-कूदते बंदर, डालो पर ,

कर रहे कैसा अजब साहस? 

कभी शौर सुनो सन्नाटो का,

होगा अजब एहसास।

पूर्व में उगता सूर्य, 

करें स्वर्णिम आभास। 

पादपों के हरे मखमल पर, 

शबनम की ठंडी बूंदें। 

देखो ,ये लहराती नदियां

कैसे अपनी राहे ढूंढे। 

पर्वतो पर गिरते,

हिम-कणों की धवल फुहार। 

कल-कल करती,

अनवरत गिरती, 

झरनों की उज्ज्वल धार। 

कभी करो तो सही ! ,

नदियों में बहते पानी से आँखें चार। 

रंग फैलाए सतरंगी,

अनोखे गुल हुए गुलजार।

कौन, हुआ यह मतवाला? 

कर रहा मग्न ,भम्रर गान। 

इतराता मृग,

हंस  करता ,सुंदरता पर अभिमान।

नृत्य करता मयूर मुग्ध ,

है करता मनमानी। 

देखो तो उधर, 

इठलाती आ रही बरखा रानी। 

नदियां ,ये कहाँ चली,

देखो कैसे बलखाती ।

ऊंची-ऊंची ,ये सागर की लहरें,

है शक्ति का एहसास कराती। 

रेगिस्तान की नर्म रेत को,

कभी तो सहलाओ। 

कब तक भटकोगे, 

मिथ्य जगत में? 

प्रकृति के सत्य सागर में,

एक पावन में डुबकी लगाओ।



           *** अंकित चौधरी ***


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