क्या याद नहीं तुमको , वो गुजरा ज़माना ,
वो बाते मोहब्बत की, वो अपना अफ़साना,
आँखों ही आँखों मे दिन यूँ गुज़रते थे ,
लब कुछ कहने को रुकते थे, सम्हलते थे ,
वो आहों की गर्मी, वो ख्वाबों में बिखर जाना,
क्या याद नहीं तुमको , वो गुजरा ज़माना ,
वो बाते मोहब्बत की, वो अपना अफ़साना,
आँखों ही आँखों मे दिन यूँ गुज़रते थे ,
लब कुछ कहने को रुकते थे, सम्हलते थे ,
वो आहों की गर्मी, वो ख्वाबों में बिखर जाना,
कल धरती माँ रोई होगी,
पलकें यूँ भिगोई होगी।
देख अपने पुत्र की हालत,
जाने कैसे सोई होगी ।
सियासत का जब जोर चला,
अंधियारो का फिर शोर चला।
शोषण की जब सरकार हुई ,
चाहु ओर हाहाकार हुई।
ग़र हक की माँगो , खाओ लाठी ,
क्यूँ व्यवस्था इतनी लाचार हुई।
जब लाठी चली बुजुर्ग के पैरो पर,