झांका हूँ जब-जब मैं दिल की गहराइयों में,
तेरा ही अक्श उभरता रहा है,
नयनो से तेरी ये जो बहता है पानी,
दिल में मेरे यूँ अखरता रहा है,,
जीने ना देती यें भीगी सी पलकें,
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झांका हूँ जब-जब मैं दिल की गहराइयों में,
तेरा ही अक्श उभरता रहा है,
नयनो से तेरी ये जो बहता है पानी,
दिल में मेरे यूँ अखरता रहा है,,
जीने ना देती यें भीगी सी पलकें,
भौतिक जगत में उतर आए,
क्यों तुम प्रसिद्धि के पंख लगा कर?
लौट चलो प्रकृति की तरफ,
पावन, सुलभ चरण बढ़ाकर।
अलौकिक सौंदर्य खोज रहा,
तुम्हें पलकें बिछाकर।
खो जाओ तुम भी उसमें,
जीवन की चाह भुला कर।
मुहब्बत का पैगाम पसंद है,
तेरे शहर में,
आज-कल हवा कुछ बदली बदली है,
शायद...
अफवाहों का बाजार गर्म है,
तेरे शहर में,
कुछ मेहमां आए थे चंद रोज़ के लिए,
जाते ही नहीं...
वो रेशमी छांव थी या एक तड़प में हंसी,
जिंदगी का ये मौसम बदल-बदल सा गया,
आज फिर से थे वो मेरे आमने-सामने,
दिल ये थम सा गया फिर मचल ही गया,
वो रेशमी छांव...
हाथ में हथियार लिए,
आंखों में अंगार लिए,
सीमा पर एक खड़ा प्रहरी,
दिल में भारत मां का प्यार लिए,
कहानी उसकी तुम्हें सुनाऊ,
सर्दी की थी रात भारी,
आंखों से बहवगे आंसू,
दिल में फूटेगी की चिंगारी,
जाहिल था,
दिए उनके जहर को ,अमृत समझ कर पी गया,
जर्रा-जर्रा करके बिखरा हूँ पतझड़ की तरहा ,
मासूमियत उनकी -
बोले, जालिम क्या खूब जिंदगी जी गया,
दर्द को क्या समझेंगे मेरे ,वो फूलों पर चलने वाले,
एक कांटा क्या लगा ,
जख्मों को कोई आंसू के मरहम से सी गया,
अचानक माहौल हुआ ये कैसा?
हवा क्यों खुश्क हो गई?
आफताब क्यों मंद है?
धरा की सोंधी खुशबू कहां खो गई?
एक चुनरी तार-तार नजर आई है अभी,
आशियां जला है किसी का ?
या फिर से कोई मासूम अपनी इज्जत खो गई,