इस अंदाज से आँखे मिलाकर, पलकें झुका ली उसने,
हम बेजान से रह गए, रुह बाकी थी वो भी चुरा ली उसने,
दीदार को उसके नयन,भटकते रहे दर-बदर,
एक निशानी थी उसकी,वो भी छुपा ली उसने,
इस अंदाज से आँखे मिलाकर, पलकें झुका ली उसने,
हम बेजान से रह गए, रुह बाकी थी वो भी चुरा ली उसने,
दीदार को उसके नयन,भटकते रहे दर-बदर,
एक निशानी थी उसकी,वो भी छुपा ली उसने,
आओ तुम्हे यूँ मजबूर कर दूँ ,
दिल खोलकर रख दूँ या चूर-चूर कर दूँ ,
ले जाओ छाँटकर , हिस्सा जो तुम्हारा है,
तुम्हारी बेख्याली मे भी तुम्हे मशहूर कर दूँ।
क्या याद नहीं तुमको , वो गुजरा ज़माना ,
वो बाते मोहब्बत की, वो अपना अफ़साना,
आँखों ही आँखों मे दिन यूँ गुज़रते थे ,
लब कुछ कहने को रुकते थे, सम्हलते थे ,
वो आहों की गर्मी, वो ख्वाबों में बिखर जाना,
कल धरती माँ रोई होगी,
पलकें यूँ भिगोई होगी।
देख अपने पुत्र की हालत,
जाने कैसे सोई होगी ।
सियासत का जब जोर चला,
अंधियारो का फिर शोर चला।
शोषण की जब सरकार हुई ,
चाहु ओर हाहाकार हुई।
ग़र हक की माँगो , खाओ लाठी ,
क्यूँ व्यवस्था इतनी लाचार हुई।
जब लाठी चली बुजुर्ग के पैरो पर,